Wednesday, July 22, 2020

बुधवारीय स्तम्भ | विचार वर्षा 8 | पंखुरी है प्रेम | डॉ. वर्षा सिंह

प्रिय ब्लॉग पाठकों, "विचार वर्षा"...   मेरे इस कॉलम में आज पढ़िए "पंखुरी है प्रेम" और अपने विचारों से अवगत कराएं ...और शेयर करें 🙏
हार्दिक धन्यवाद युवा प्रवर्तक 🙏🌹🙏
दिनांक 22.07.2020

मित्रों, आप मेरे इस कॉलम को इस लिंक पर भी जाकर पढ़ सकते हैं-
https://yuvapravartak.com/?p=38112

बुधवारीय स्तम्भ : विचार वर्षा

पंखुरी है प्रेम
           -डॉ. वर्षा सिंह
         
       यूरोप में प्रेमीजन अपने प्रेम और अपने प्रेमी की जांच करने के लिए लव्ज़ मी, लव्ज़ मी नॉट… अर्थात् वह मुझसे प्यार करता है, वह मुझसे प्यार नही करता … कहते हुए फूल की एक-एक पंखुरी तोड़ते जाते हैं और अंतिम पंखुरी तोड़ते समय लव्ज़ मी या लव्ज़ मी नॉट में से जो भी वाक्यांश उच्चारित होता है, उसके आधार पर प्रेम और प्रेमी का आकलन करते हैं। प्रेम फूल की पंखुरी-सा एक नाज़ुक अहसास जो है… और प्रेम के प्रदर्शन का माध्यम भी।
 फिल्म सरस्वतीचंद्र में लिखा इन्दीवर का गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था -
फूल तुम्हें भेजा है ख़त में, फूल नहीं मेरा दिल है
प्रियतम मेरे तुम भी लिखना, क्या ये तुम्हारे क़ाबिल है
     प्रेम में फूल का अपना एक महत्व होता है। खिले हुए फूल एक-दूसरे को उपहार स्वरूप देकर प्रेम प्रकट किया जाता है। फूल दे कर प्रेम प्रदर्शन की रीत वैलेंटाइन मनाने वाले योरोपीय देशों मात्र में ही नहीं बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप का भी हिस्सा है। ज़रूरी नहीं कि लाल गुलाब दे कर ही प्रेम प्रदर्शित किया जाता हो। हर वह नाज़ुक-सा फूल जो प्रेम की भावनात्मकता से जुड़ा हो प्रेम प्रदर्शन का जरिया बन जाता है।
   कालिदास लिखित जगप्रसिद्ध संस्कृत नाटक "मालविकाग्निमित्र" में द्वितीय शुंग शासक अर्थात् विदिशा के राजा अग्निमित्र की दूसरी रानी इरावती वसंत ऋतु के आगमन पर प्रेमाभिलाषा प्रकट करने के लिए राजा अग्निमित्र के पास लाल कुरबक के नवीन पुष्पों को भिजवाती है। कुरबक के फूल कचनार के फूलों के समान आकर्षक और कोमल पंखुरियों वाले होते हैं।
     प्रेम के प्रतीक नाज़ुक पंखुरियों वाले फूल को यदि प्रेमीजन द्वारा सहेज कर रखा गया हो तो सूखने के बाद भी वर्षों तक उस फूल में निहित प्रेम और प्रेम भरे पलों की यादें की ताज़गी, उसकी सुगंध मानव मस्तिष्क में बसी रहती है। अभी पिछले लगभग दो दशक पहले तक यानी बीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण तक, जब कम्प्यूटर का वर्चस्व, वर्तमान समय जितना नहीं था, क़िताबों से दोस्ती गहरी और सुकून देने वाली हुआ करती थी, तब उन दिनों में अक्सर प्रेमोपहार स्वरूप मिले फूल को किसी पसंदीदा किताब के पन्नों में दबा कर रख दिया जाता था। जब कभी वह किताब खुलती और उस किताब का वह पन्ना सामने होता तो मुरझाया ही सही, वह फूल भी सामने आ जाता था और सामने आ कर दिल में अजीब-सी हलचल जगा कर उन क्षणों की अनायास ही याद दिला देता, जब आपस में दो प्रेम करने वालों में से किसी एक ने दूसरे को प्रेम के प्रतीक फूल को उपहार स्वरूप भेंट किया होता था। भले ही फूल सूख चुका होता था लेकिन प्रेम की महक का अहसास पूरी शिद्दत से दिलो दिमाग छा जाता था।
किताब में दबे हुए सूखे फूल की चर्चा शायर "अहमद फ़राज़" ने अपने इस मतले में यूं की है -
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें।
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें।

किताब में दबा हुआ फूल, प्रेम के पलों की यादों को किस तरह ताज़ा कर देता है डॉ. (सुश्री) शरद सिंह के इस मतले से बयां हो रहा है -
किसी किताब में एक फूल सी दबी यादें ।
दिखी हैं आज हथेली पे वो रखी यादें ।

यकीनन, किताबों में सहेज कर रखा गया फूल प्रेम में डूबे हुए पलों की यादें ताज़ा कर देता है लेकिन यदि उस फूल को सहेज कर नहीं रखा गया और गुलदान में रखे हुए फूल की तरह उसे मुरझाने के बाद कूड़ेदान में फेंक दिया गया तो प्रेम भी अतीत के साथ ही कालकवलित हो जाता है। तब न तो फूल शेष रह जाता और न ही प्रेम का ताज़गी भरा अहसास। इसलिए  प्रेम को भी फूल की तरह सहेज कर रखा जाना चाहिए। संबंधों में बंधा हुआ प्रेम अगर टूट जाए तो अदालत की ड्योढ़ी तक जा पहुंचता है। पंखुरी दर पंखुरी सहेजा गया प्रेम ही जीवन को संवारता है। संवेदनाओं को नित नई ऊर्जा से भरता है। प्रेम मुरझाए हुए फूल में भी जीवंतता भर देता है। हम सहेज लें प्रेम को फूल की पंखुरी की तरह।

और अंत में प्रस्तुत है मेरी एक ग़ज़ल का मतला…
भूली बिसरी याद जाग कर हलचल करती है दिल में।
सूखा फूल मिला हो जैसे किसी पुराने नॉविल में।
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सागर, मध्यप्रदेश





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2 comments:

  1. सादर प्रणाम
    बहुत सुंदर लेख

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    1. हार्दिक आभार

      मेरे ब्लॉग पर पधारने का मेरा अनुरोध स्वीकार करने और मेरे लेख पर अपनी राय प्रकट करने हेतु पुनः आभार 🙏

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