Friday, October 2, 2020

महामानव लाल बहादुर शास्त्री | 2 अक्टूबर जन्म दिवस पर स्मरण | डॉ. वर्षा सिंह

 
Dr. Varsha Singh

           जिस तारीख़ और माह में महात्मा गांधी का जन्म हुआ उसी तारीख़ और माह में 'जय जवान-जय किसान' का नारा देने वाले भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म हुआ यानी 2 अक्टूबर को ये दोनों महापुरुष जन्में थे। महात्मा गांधी का जन्म सन् 1869 को हुआ था, उसके ठीक 35 वर्ष बाद सन् 1904 को लाल बहादुर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी से लगभग 12 किलोमीटर दूर एक छोटे से रेलवे टाउन, मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव  एक स्कूल शिक्षक थे। जब लाल बहादुर शास्त्री की आयु मात्र डेढ़ वर्ष थी तभी उनके पिता का निधन हो गया था। उनकी माता श्रीमती राम दुलारी को अपने तीनों बच्चों के साथ मायके में रहना पड़ा था। पति के निधन के बाद वे अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्जापुर आ गई थीं। कुछ समय पश्चात शास्त्री जी के नाना हजारीलाल का भी देहांत हो गया।

     शिक्षा के प्रति उनकी गहरी रुचि थी। भीषण गर्मी में भी कई मील की दूरी नंगे पांव तय कर शास्त्री जी विद्यालय जाते थे। मिर्जापुर जैसे छोटे-से शहर में स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद शास्त्री जी को चाचा के साथ वाराणसी भेज दिया गया था ताकि वे उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें। हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी-विद्यापीठ में उच्च शिक्षा प्राप्त कर लाल बहादुर शास्त्री ने संस्कृत भाषा में स्नातक किया था।  काशी-विद्यापीठ में उन्होंंने ‘शास्त्री’ की उपाधि प्राप्त की। उसी वक्त के बाद से ही उन्होंंने ‘शास्त्री’ को अपने नाम के साथ जोड़ दिया। इसके बाद वे शास्त्री के नाम से जाने गए। लाल बहादुर शास्त्री का घरेलू नाम नन्हें था। 

       किशोरावस्था से ही लाल बहादुर शास्त्री देश की आजादी के लिए किए जा रहे प्रयासों के प्रति रुचि लेने लगे थे। वे महात्मा गांधी के विचारों से अत्यंत प्रभावित हुए। जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों से आह्वान किया था, इस समय लाल बहादुर शास्त्री की आयु मात्र सोलह वर्ष थी। उन्होंने महात्मा गांधी के इस आह्वान पर अपनी पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर लिया था। उनके इस निर्णय को उनके परिवार का समर्थन नहीं मिला। किन्तु लाल बहादुर ने अपना मन बना लिया था। उनके सभी करीबी लोगों को यह पता था कि एक बार मन बना लेने के बाद वे अपना निर्णय कभी नहीं बदलेंगें। वे सभी जानते थे कि बाहर से विनम्र दिखने वाले लाल बहादुर अन्दर से फौलाद की तरह सख़्त हैं।

        ब्रिटिश शासन की अवज्ञा में स्थापित किये गए कई राष्ट्रीय संस्थानों में से एक वाराणसी के काशी विद्यापीठ में लाल बहादुर शास्त्री शामिल हुए। जहां उन्हें निकट से महान विद्वानों एवं देश के राष्ट्रवादियों के विचार जानने का अवसर मिला। विद्यापीठ द्वारा उन्हें प्रदत्त स्नातक की डिग्री का नाम ‘शास्त्री’ था जो उनके नाम का हिस्सा बन कर उनकी पहचान, उनका उपनाम बन गया।

        सन् 1927 में उनका विवाह पत्नी ललिता देवी से हुआ जो मिर्जापुर की थीं ।  शास्त्री जी दहेज के सख़्त विरोधी थे, अतः रीति - रिवाजों और सामाजिक आग्रहों की पूर्ति के लिए ने उन्होंने अपने इस विवाह में दहेज के तौर पर मात्र एक चरखा एवं हाथ से बुने हुए कुछ मीटर कपड़े स्वीकार किए थे। उनकी छह संताने हुईंं। उनके एक पुत्र अनिल शास्त्री कांंग्रेस पार्टी के सदस्य रहे। 
       लाल बहादुर शास्त्री सन् 1930 में महात्मा गांधी के प्रसिद्ध नमक कानून के विरोध में निकाली गई दांडी यात्रा में सम्मिलित हुए थे। इस प्रतीकात्मक सन्देश ने पूरे देश में एक तरह की क्रांति ला दी। इस प्रकार शास्त्री जी स्वतंत्रता के इस संघर्ष में खुल कर शामिल हो गए। उन्होंने कई विद्रोही अभियानों का नेतृत्व किया एवं कुल सात वर्षों तक ब्रिटिश जेलों में रहे। आजादी के इस संघर्ष ने उन्हें पूर्णतः परिपक्व बना दिया।

     15 अगस्त1947 को मिली आजादी के बाद जब कांग्रेस सत्ता में आई, तो लाल बहादुर शास्त्री को अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश का संसदीय सचिव नियुक्त किया गया । कुछ समय पश्चात वे गृह मंत्री के पद पर आसीन हुए। कड़ी मेहनत करने की उनकी क्षमता एवं उनकी दक्षता उत्तर प्रदेश में एक लोकोक्ति बन गई। वे 1951 में नई दिल्ली आ गए एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का प्रभार संभाला – रेल मंत्री; परिवहन एवं संचार मंत्री; वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री; गृह मंत्री एवं नेहरू जी की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री रहे। उनकी प्रतिष्ठा लगातार बढ़ रही थी। एक रेल दुर्घटना, जिसमें कई लोग मारे गए थे, के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। देश एवं संसद ने उनके इस अभूतपूर्व पहल को काफी सराहा। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने इस घटना पर संसद में बोलते हुए लाल बहादुर शास्त्री की ईमानदारी एवं उच्च आदर्शों की काफी तारीफ की। उन्होंने कहा कि उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री का इस्तीफा इसलिए नहीं स्वीकार किया है कि जो कुछ हुआ वे इसके लिए जिम्मेदार हैं बल्कि इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि इससे संवैधानिक मर्यादा में एक मिसाल कायम होगी। रेल दुर्घटना पर लंबी बहस का जवाब देते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था कि “शायद मेरे लंबाई में छोटे होने एवं नम्र होने के कारण लोगों को लगता है कि मैं बहुत दृढ नहीं हो पा रहा हूँ। यद्यपि शारीरिक रूप से में मैं मजबूत नहीं है लेकिन मुझे लगता है कि मैं आंतरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ।”

       वर्ष 1952, 1957 एवं 1962 के आम चुनावों में पार्टी की निर्णायक एवं जबर्दस्त सफलता में उनकी संगठनात्मक प्रतिभा एवं पारखी दृष्टि क्षमता मूलकारक बनी। 9 जून 1964  में लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री बनने के बाद 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ। युद्ध की वजह से देश में खाद्यान्न की भारी किल्लत हो गई। वहीं अमेरिका ने भी भारत को होने वाले अनाज एक्सपोर्ट को रोकने की धमकी दे दी। इन हालातों में देश के लिए काफी मुश्किल दौर था। ऐसे में लाल बहादुर शास्त्री ने जनता से अपील की कि लोग हफ्ते में 1 दिन का खाना 1 वक्त के लिए छोड़ देना चाहिए।1966 में ताशकंद समझौते के दौरान शास्त्री जी का  संदिग्ध परस्थितियों में  निधन हो गया। शास्त्री जी ने 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद में अंतिम सांस ली थी। 1978 में प्रकाशित ‘ललिता के आंसू ’ नामक पुस्तक में उनकी पत्नी ने शास्त्री जी की मृत्यु के संबंध में प्रश्न उठाए हैं। कुलदीप नैयर जो कि शास्त्री जी के साथ ताशकंद गए थे, उन्होंने भी कई तथ्य उजागर किये परन्तु कोई उचित परिणाम नहीं निकले। 2012 में इनके पुत्र सुनील शास्त्री ने भी न्याय की मांग की किन्तु सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आए।
          तीस से अधिक वर्षों तक अपनी समर्पित सेवा के दौरान लाल बहादुर शास्त्री अपनी उदात्त निष्ठा एवं क्षमता के लिए जाने गए। विनम्र, दृढ, सहिष्णु एवं अद्भुत आंतरिक शक्ति वाले शास्त्री जी लोगों के बीच ऐसे व्यक्ति बनकर उभरे जिन्होंने लोगों की भावनाओं को समझा। वे दूरदर्शी थे जो देश को प्रगति के मार्ग पर लेकर आये। लाल बहादुर शास्त्री महात्मा गांधी के राजनीतिक शिक्षाओं से अत्यंत प्रभावित थे। अपने गुरु महात्मा गाँधी के ही लहजे में एक बार उन्होंने कहा था – “मेहनत प्रार्थना करने के समान है।” महात्मा गांधी के समान विचार रखने वाले लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ पहचान हैं। शारीरिक दृष्टि से छोटे कद के दुबले पतले होने के बावजूद उनके व्यक्तित्व का कद किसी महामानव से कम नहीं था। मरणोपरांत उन्हें भारतरत्न से भी सम्मानित किया गया था।
     वर्तमान समय में देश को ऐसे ही देशभक्त और कर्मठ राजनेताओं की आवश्यकता है। जो समर्पण भावना से देश और जनता की सेवा करें। अवसरवादिता की छाया से स्वयं को बचा कर रखे और दल बदल की राजनीति से व्यक्तिवाद का प्रपंच रच कर जनता के साथ छल न करे। लालबहादुर शास्त्री सरीखे नेताओं की कमी आज के दौर में बेहद खटकती है। अपने सिद्धांतों के प्रति निष्ठावान बने रहना उनकी सबसे बड़ी ख़ूबी थी। जिसका अधिकांश वर्तमान राजनेताओं में अभाव दिखता है।
      आज 2 अक्टूबर 2020 को स्व. लाल बहादुर शास्त्री को उनके 116वें जन्मदिन अर्थात् 115वीं वर्षगांठ पर कोटिशः नमन 💐🙏💐

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मेरा यह आलेख आज "युवाप्रवर्तक" में भी प्रकाशित हुआ है। लिंक प्रस्तुत है - 

4 comments:

  1. महात्मा गांधी के जन्मदिवस पर प्रायः शास्त्री जी का स्मरण नेपथ्य में चला जाता है । आपका यह लेख तथ्यपरक है वर्षा जी । उनके आदर्श दिखावे या भाषणबाज़ी के न होकर वास्तविक थे, उनके आचरण में परिलक्षित थे । आज उनके जैसे ही नेता की आवश्यकता है विपदाओं से घिरे भारत की बागडोर संभालने के लिए । समयोचित लेख के लिए आपका आभार एवं अभिनंदन ।

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    1. जी हां, गांधी जी के विशाल व्यक्तित्व के समक्ष स्व. लालबहादुर जी का अनुकरणीय एवं स्मरणीय व्यक्तित्व सिर्फ दोनों का जन्मदिन एक होने के कारण हमेशा नेपथ्य में जाता रहा है।
      आपने मेरे लेख को पढ़ कर विस्तृत टिप्पणी दी, इस हेतु हार्दिक आभार जितेन्द्र माथुर जी 🙏💐🙏

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  2. वर्तमान समय में देश को ऐसे ही देशभक्त और कर्मठ राजनेताओं की आवश्यकता है। जो समर्पण भावना से देश और जनता की सेवा करें। अवसरवादिता की छाया से स्वयं को बचा कर रखे और दल बदल की राजनीति से व्यक्तिवाद का प्रपंच रच कर जनता के साथ छल न करे। लालबहादुर शास्त्री सरीखे नेताओं की कमी आज के दौर में बेहद खटकती है। अपने सिद्धांतों के प्रति निष्ठावान बने रहना उनकी सबसे बड़ी ख़ूबी थी। जिसका अधिकांश वर्तमान राजनेताओं में अभाव दिखता है।
    बहुत अच्छी सारगर्भित प्रस्तुति
    सच है कमोवेश गाँधी जयंती में शास्त्री जी को कम ही याद करते हैं लोग, जागरूकता भरे ऐसे लेख उनकी देश के प्रति समर्पित भाव को जगाने में सक्षम होंगे

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    1. कविता जी, विशाल वटवृक्ष की छाया में अनेक लाभप्रद जड़ीबूटियों को हम देख नहीं पाते।
      ठीक वैसे ही 02 अक्टूबर को गांधी जयंती मनाते हुए अक्सर स्व.लालबहादुर शास्त्री जी के जन्मदिन की चर्चा कम ही कर पाते हैं हम।

      आपकी विस्तृत टिप्पणी के लिए आपके प्रति हार्दिक आभार कविता जी 💐❤💐

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