Dr. Varsha Singh |
प्रिय ब्लॉग पाठकों, "विचार वर्षा"... मेरे इस कॉलम में आज पढ़िए "छोटी ख़ुशियां, बड़ी ख़ुशियां" और अपने विचारों से अवगत कराएं ...और शेयर करें 🙏
हार्दिक धन्यवाद युवा प्रवर्तक 🙏🌹🙏
दिनांक 29.07.2020
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बुधवारीय स्तम्भ : विचार वर्षा
छोटी ख़ुशियां, बड़ी ख़ुशियां
- डॉ. वर्षा सिंह
ख़ुशियां चाहे छोटी हो या बड़ी, जीवन में ऊर्जा का स्रोत होती हैं। अक्सर हम बड़ी ख़ुशी की चाहत में छोटी-छोटी ख़ुशियों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। मैं एक सच्ची घटना आप सब से साझा कर रही हूं। मैंने इसमें सिर्फ नाम बदले हैं, पर है यह हकीकत। मेरे एक परिचित मनोज जी अच्छा ख़ासा कमाते थे। उनका एक ख़ुशहाल परिवार है जिसमें उनकी पत्नी और दो छोटे बच्चे भी अपने परिवार को ख़ुश रखने का हर संभव प्रयास करते रहते थे, लेकिन कुछ अरसा पहले ही मानो उनकी ख़ुशियों को उनकी अपनी चाहत का ही ग्रहण लग गया। एक दिन उनकी बेटी ने पड़ोस में रहने वाले मलहोत्रा जी की एक कार को देखकर बचपने के भाव में ही मनोज जी से यह कह दिया कि पापा अगर हमारे पास भी कार होती तो कितना मज़ा आता। मनोज जी ने यह बात अपने दिल पर ले ली और उन्हें लगा कि यदि मैं अपने बच्चों के लिए कार खरीद दूं तो उन्हें और ज्यादा ख़ुशी मिलेगी। लेकिन बच्चों की प्राइवेट स्कूल की फीस, खान-पान, अन्य घर ख़र्च आदि के चलते फिलहाल उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे कार अफ़ोर्ड कर पाते। तब उन्होंने दूसरा रास्ता अपनाने का विचार किया और वे अपने पद का दुरुपयोग करने लगे। कार की चाहत में वे इस हद तक डूब गए कि उन्हें पता ही नहीं चला कि वे कब एक भ्रष्ट अधिकारी का रूप लेते चले गए। फिर एक दिन अचानक उनके घर पर छापा पड़ा और तब उनकी सारी सम्पत्ति सीज़ कर दी गई। उसमें वह सम्पत्ति भी शामिल थी जो उन्होंने अपनी मेहनत से कमाई थी। यानी कहां तो मनोज जी एक बड़ी ख़ुशी देने के लिए प्रयासरत थे और पता चला कि इस प्रयास में ग़लत रास्ता अपनाते हुए उन्होंने अपने और अपने परिवार की छोटी-छोटी ख़ुशियों को भी अपने ही हाथों मिटा डाला। आज उनका परिवार मुक़दमेबाज़ी में उलझा हुआ है। उनकी पत्नी परेशान रहती हैं और बच्चे मां-बाप की परेशानियों की सज़ा भुगत रहे हैं।
जब भी मैं इस घटना के बारे में सोचती हूं तो मुझे लगता है कि हमारे जीवन में जो छोटी-छोटी खुशियां है वह मिलकर भी एक बड़ी ख़ुशी का रूप ले सकती हैं, सिर्फ उन्हें ध्यान से देखने, परखने और समझने की ज़रूरत होती है।
अक्सर हम जब कहीं घूमने जाते हैं, बाग़-बग़ीचे देखते हैं तो मन ख़ुशी से भर उठता है। यदि हम यह सोचने लगें कि काश, हमारे पास भी ऐसा ही फूल-पौधों भरा ख़ूबसूरत-सा बहुत बड़ा गार्डन होता, तो हमें बेचैनी होने लगेगी। सारी ख़ुशी कुण्ठा में तब्दील हो जाएगी। उस बड़े से ख़ूबसूरत गार्डन को हासिल करने की चाहत रातों की नींद और दिन का चैन छीन लेगी। लेकिन यदि हम यह सोचें कि इतने बड़े गार्डन के बजाए कुछ ख़ूबसूरत फूलों के पौधों के गमले हम अपने टैरेस, बालकनी, छत या आंगन में रख कर उनकी देख-भाल करें तो कितना मज़ा आएगा। जी हां, अक्सर सिर्फ़ एक फूल के पौधे के लालन-पालन में जो ख़ुशी मिलती है, वह एक बड़ा सा गार्डन लगाकर उसे माली के हवाले कर देने में नहीं मिलती। छोटी खुशियों का अपना अलग महत्व होता है। यही छोटी-छोटी खुशियां मिलकर खुशियों का एक बहुत बड़ा संसार बना देती हैं।
मुझे याद आ रही है वह इतालवी लोककथा जिसमें ख़ुशी का वास्तविक अर्थ व्याख्यायित है।
एक शांतिपूर्ण और शक्तिशाली राज्य के शासक राजा गिफ़ाड का युवा पुत्र राजकुमार जोनाश कुछ दिनों से अकसर अपने कमरे की खिड़की के पास बैठकर दुखी मन से खिड़की से बाहर देखता रहता। राजा गिफ़ाड को जब यह पता चला तो वे चिंतित हो उठे और उन्होंने राजकुमार जोनाश से पूछा कि आख़िर कौन-सी बात उसे परेशान कर रही है ? बहुत देर तक पूछने के बाद जोनाश ने बताया कि उसे महल के बड़े-बड़े तामझाम की किसी चीज़ में ख़ुशी महसूस नहीं होती। वह खुश रहना चाहता है लेकिन वह नहीं जानता कि कैसे ख़ुश रहे। यह सुन कर राजा और अधिक चिंतित हो उठा। तब उसने इस समस्या का हल निकालने के लिए अपने राज्य के बेहतरीन चिकित्सकों, ज्योतिषियों और विद्वानों से विचार-विमर्श किया। सबने विमर्श उपरांत एकमत हो कर यह निष्कर्ष निकाला कि राजकुमार की सहायता करने के लिए एक ऐसा व्यक्ति खोजना होगा जो अपने जीवन से पूरी तरह ख़ुश और संतुष्ट हो। फिर उस व्यक्ति की कमीज़ यदि राजकुमार जोनाश को पहना दी जाए तो राजकुमार को सुख और ख़ुशी का अनुभव होने लगेगा।
ख़ुश और संतुष्ट व्यक्ति की तलाश पूरे राज्य में होने लगी। लेकिन खोज़कर्ताओं को ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं मिल रहा था। तब एक दिन परेशान राजा गिफ़ाड ने मनबहलाव के लिए शिकार पर घने जंगल में जाने का फ़ैसला किया। शिकार पर निकले राजा गिफ़ाड को जंगल में बहने वाली नदी के किनारे सरकंडों के बीच निश्चिंत भाव से ख़ुशी से सीटी बजाता, पीठ के बल लेटा कर आसमान में तैरते बादलों को निहारता हुआ एक ख़ूबसूरत युवक दिखाई दिया। राजा ने युवक की ख़ुशी का मापन करने के लिए उस युवक से पूछा कि यदि उसे राज्य का आधा हिस्सा मिल जाए तो क्या उसे ख़ुश होगी। युवक हंस पड़ा और बोला कि वह तो वैसे ही बहुत ख़ुश है, आधा राज्य ले कर सिरदर्दी नहीं पालना चाहता। राजा समझ गया कि यही वह युवक है जिसकी क़मीज़ उसके पुत्र के लिए वरदान साबित होगी। राजा ने राजकुमार जोशान का पूरा हाल बता कर युवक से उसकी क़मीज़ मांगी। युवक हंस कर उठ बैठा, राजा ने देखा कि उस ख़ुशमिज़ाज और सुखी व्यक्ति ने कमीज़ ही नहीं पहनी हुई थी। राजा को अहसास हो गया कि असली ख़ुशी पाने के लिए छोटी ख़ुशियों को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। अनेक छोटी-छोटी ख़ुशियां जीवन को बड़ी ख़ुशी देती हैं।
और अंत में मेरी एक ग़ज़ल के ये दो शेर…
जंगल में, वादियों में, पत्थर में, रेत में,
कुछ फ़र्क नहीं करती, बहती है जब नदी।
देखा है मैंने "वर्षा", ग़म के पहाड़ पर
अक्सर पड़ी है भारी, छोटी सी इक ख़ुशी।
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सागर, मध्यप्रदेश
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