Sunday, May 31, 2020

मानवता का दूसरा नाम है दानशीलता - डॉ.वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

मानवता का दूसरा नाम है दानशीलता
                 - डॉ. वर्षा सिंह
       रामचरित मानस में कहा गया है - 'परहित सरिस धरम नहिं भाई' ... निःस्वार्थ भाव से परमार्थ की गई सहायता दान की श्रेणी में आती है। यह करूणाजन्य कृत्य मानवता का परिचायक है। बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि मानवता का दूसरा नाम है दानशीलता।
       महाभारत महाकाव्य में उल्लेख है कि जब यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया कि श्रेष्ठ दान क्या है ? तब युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि वही श्रेष्ठ दान है जो सत्पात्र को दिया जाए। अर्थात् जो व्यक्ति प्राप्त दान को श्रेष्ठ कार्य में लगा सके, उसी व्यक्ति को दिया गया दान श्रेष्ठ होता है। उसी दान से पुण्यफल प्राप्त होता है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में एक से बढ़ कर एक दानवीरों का उल्लेख मिलता है यथा कर्ण ने जन्म से ही अपनी देह के साथ जुड़े कवच- कुण्डलों का, शिवि ने अपने मांस का, जीमूतवाहन ने अपने जीवन का तथा दधीचि ने अपनी अस्थियों का दान कर दिया था।
महाभारत का ही एक श्लोक है -
न हीदृशं संवननं,
त्रिषु लोकेषु विद्यते।
दया मैत्री च भूतेषु,
दानं च मधुरा च वाक्।।

अर्थात् प्राणियों के प्रति दया, सौहार्द्र, दानकर्म, एवं मधुर वाणी के व्यवहार के जैसा कोई वशीकरण का साधन तीनों लोकों में नहीं है ।
       वर्तमान समय में दानशीलता के बहुत कम प्रसंग देखने-सुनने को मिलते हैं किन्तु पिछले दिनों कोरोनाकाल में लॉकडाउन अवधि में दैनिक भास्कर समाचारपत्र के भिंड (मध्यप्रदेश) संस्करण में प्रकाशित यह समाचार अनुकरणीय कार्य का लेखा-जोखा है.... एक प्रेरक प्रसंग है।
यह समाचार मैं यहां जस का तस उद्धृत कर रही हूं -
"कोरोना संक्रमण काल में शहर के कई डॉक्टर मरीजों को नि:शुल्क सेवाएं दे रहे हैं। इन्हीं में एक मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. शैलेंद्र परिहार हैं। उन्होंने कोरोना संक्रमण काल शुरू होने पर निश्चय किया था कि मरीजों से अपनी निर्धारित फीस 300 रुपए नहीं लेंगे।  इसके साथ ही एक दान पेटी रखवाई थी जिसमें स्वेच्छा से लोग गरीबों के लिए दान कर सकते हैं। आज जब इस पेटी को खुलवाया गया तो उसमें से 15 हजार रुपए निकले। अब इतनी राशि डॉ. परिहार अपनी ओर से मिलाकर गरीबों की मदद करेंगे।   यहां बता दें कोरोना संक्रमण काल में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के आह्वान पर शहर के 12 डॉक्टरों में कोई क्लीनिक पर तो कोई टेली मेडिसिन के माध्यम से मरीजों को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। डाॅ. परिहार ने कोरोना संक्रमण काल में मरीजों के सीधे संपर्क में न आने के लिए सेफ क्लीनिक भी बनाया। इसमें कांच की दीवार के एक ओर डॉक्टर और दूसरी ओर मरीज रहते हैं। मरीज के हाथ सेनेटाइज कराकर बीपी और पल्स ऑक्सीमीटर से पल्स और आक्सीजन सेचुरेशन, थर्मामीटर से टेम्प्रेचर और स्टेथेस्कोप से मरीज की जांच की जाती है। जरूरत होने पर पेरा मेडिकल स्टाफ का एक व्यक्ति मरीज की मदद देता है।" वास्तव में यह सच्ची मानवता और दानशीलता है।
         पिछले कई दिनों से बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद ने लॉकडाउन की वजह से फंसे मज़दूरों को घर पहुंचाने में उनकी हरसंभव मदद की। वो उनके लिए बसों से लेकर खाने-पीने की चीज़ों तक का इंतज़ाम करते रहे। सोनू सूद ने कोरोना महामारी के बीच न सिर्फ हजारों प्रवासी कामगार मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाया, बल्कि मुंबई पुलिस को 25 हजार फेस शील्ड भी दान किये।
          अभिनेता सोनू सूद से प्रेरित होकर बॉलीवुड के अन्य सितारों ने भी अब लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया। जहां अक्षय कुमार पीएम केयर्स में कई करोड़ भारत की आम जनता के लिए दान दिए वहीं अजय देवगन ने एशिया की सबसे बड़ी स्लम बस्ती धारावी में करीब सात सौ परिवारों की जिम्मेदारी उठायी।
       कोरोनाजन्य संकट से उत्पन्न लॉकडाउन की विषम परिस्थिति में जबकि अनेक व्यक्ति दाने-दाने के मोहताज हो रहे हैं, ऐसे समय में मनुष्य के भीतर सुप्त मानवता को जागृत करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को अपने भीतर दानशील प्रवृत्ति को जगाना ज़रूरी है। 
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