Dr. Varsha Singh |
हम भारत के लोग
- डॉ. वर्षा सिंह
भारतीय संस्कारों से परे हम और हमारा समाज पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण में लगा है। भारतवासी कहलाने के बजाए हम स्वयं को इंडिया वाले कहलाना ज़्यादा पसंद करने लगे हैं। जबकि हमें अपने संविधान की प्रस्तावना के शब्दों को याद रखना चाहिए, जिसमें लिखा है...
"हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मसमर्पित करते हैं।"
यहां "हम भारत के लोग" महत्वपूर्ण है।
आज "इंडियन" कहने में हमें गर्व महसूस होता है और भारतवासी कहने में देहातीपन का बोध। पश्चिमी अंधानुकरण हमें कहां से कहां ले आया है। हमें चाहिए कि कम से कम कोरोना संकट से तो कुछ सीख लें और अपनी जड़ों की तरफ लौट कर भारतीयता को फिर से अपना लें। भारतीयता हमें सच्चा भारतवासी बना कर हर आपदा से सुरक्षित रखने का महती काम करेगी। फिर वह कोरोना हो या अन्य कोई भी आपदा।
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