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Wednesday, December 9, 2020

बुधवारीय स्तम्भ | विचार वर्षा 28 | विश्वास, रामसेतु और नलनील | डॉ. वर्षा सिंह

प्रिय मित्रों, "विचार वर्षा"...   मेरे इस कॉलम में आज पढ़िए " विश्वास, रामसेतु और नल-नील" ...अपने विचारों से अवगत कराएं ...और शेयर करें 🙏
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दिनांक 09.12.2020

मित्रों, आप मेरे इस कॉलम को इस लिंक पर भी जाकर पढ़ सकते हैं-

बुधवारीय स्तम्भ : विचार वर्षा

विश्वास, रामसेतु और नल-नील

            -डॉ. वर्षा सिंह

    पिछले वर्ष का एक वाकया याद आ रहा है। लगभग इन्हीं दिनों यानी दिसम्बर की घटना है। घर के बरामदे वाली बाहरी बैठक की दीवारें बारिश में उखड़ी-पुखड़ी सी हो चली थीं। मैंने एक ठेकेदार से बात कर दीवारों पर पुट्टी लगा कर पुताई करने का काम चालू करवा दिया। मुश्किल से दो दिन काम करने के बाद जब तीसरे-चौथे दिन कोई वर्कर नहीं आया तो मैंने फोन पर ठेकेदार से बात की। उसने कहीं और किसी के भवन निर्माण का बड़ा काम हाथ में लेने का ज़िक्र करते हुए मुझे एकाध सप्ताह रुकने का कह दिया। बड़ी झुंझलाहट सी हुई। इस तरह अधूरा काम बीच में छोड़ना था तो ठेका लिया ही क्यों? और बरामदे की पुताई पुट्टी का काम कोई इतना छोटा काम भी नहीं है कि उसे छोटा काम कह कर टाल दिया जाए। आख़िर यह काम भी कोई मुफ्त में तो कराया नहीं जा रहा था इसके भी पूरे पैसे किश्तों में नक़द रक़म देने के लिए तय हुए थे। क्या करूं कुछ समझ में नहीं आ रहा था। घर के बरामदे में, वह भी सामने वाली बैठक में जिस तरह आधा-अधूरा काम पड़े रहने से दीवारें और भी अधिक बदरंग दिखाई देने लगी थीं, मन में यही धुकपुक लगी रहती कि कहीं कोई मेहमान न आ जाए। वरना इस कदर बुरी हालत वाली घर के सामने की बाहरी बैठक को देखकर वे अपने मन में क्या सोचेंगे! माना कि घर का ड्राइंग रूम सुसज्जित था, फिर भी बरामदे की बाहरी बैठक का भी काफी चुस्त-दुरुस्त होना बेहद जरूरी था। घर की बाहरी बैठक का इम्प्रेशन भी मायने रखता है।
     मैं इसी उधेड़बुन में थी कि क्या करूं! अभी ठेकेदार ने एक सप्ताह तक रुकने की बात कही है, किंतु अब मुझे उसकी बात पर विश्वास नहीं रहा था। क्या पता यह एक सप्ताह एक माह दो माह या 6 माह में बदल जाए, आखिर इस तरह रंगरोगन, पुट्टी आदि कब तक यहां बरामदे में बिखरी पड़ी रहेगी और बदरंग दीवारें कब तक मुझे मुंह चढ़ाती रहेंगी। तभी अचानक मेरी एक महिला मित्र का फोन आया उसने पूछा -'वर्षा क्या हो रहा है, कैसी हो?' उसके द्वारा इतना पूछते ही मैं अपना दुखड़ा ले बैठी।पूरी बात 'ए टू जेड' मैंने उसे सुनाई। मेरी बात सुनकर मेरी मित्र ने कहा कि-'यह कोई नई बात नहीं है। अक्सर कुछ ठेकेदार इसी तरह की मनोवृति के होते हैं और अक्सर इस तरह चीटिंग करते हैं। पहले बहुत दिलचस्पी दिखा कर काम स्वीकार करते हैं और फिर बाद में कहीं ज़्यादा बड़े काम का ठेका मिल जाने पर, पहले स्वीकारे गए काम को छोटा काम बता कर इसी तरह टालमटोल करते हुए हफ्तों महीनों में पूरा करते हैं।' मैंने अपनी सहेली से पूछा कि- 'अब बताओ मैं क्या करूं ? मेरी तो समझ में ही नहीं आ रहा है। पता नहीं किस ख़राब मुहूर्त में मैंने इस काम की शुरुआत की। पता नहीं कहां से मेरे दिमाग में यह बात आई कि मैं उस चीटर ठेकेदार से बात करूं और उसे पुट्टी-पुताई का ठेका दूं।'
     मेरी सहेली ने मुझे ढाढस बंधाते हुए कहा कि -'वर्षा, चिंता मत करो।मैं एक व्यक्ति को जानती हूं वह और उसका एक साथी दोनों मिलकर तीन-चार दिन में पुट्टी और रंग रोगन का काम पूरा कर देंगे।'
 मैंने पूछा -'कौन है?'  तब उसने बताया कि वैसे तो उन लोगों का काम मालीगिरी का है। वे उसके घर पर लॉन और गमलों में लगे पौधों की देखरेख करने महीने में एकाध बार आते हैं, लेकिन उन्हें पुट्टी और रंगरोगन करने का भी अच्छा ज्ञान है।
    मरता क्या न करता … ज्यादा सोच विचार नहीं करते हुए मैंने अपनी उस मित्र से हां कह दी और उसने दूसरे ही दिन उन व्यक्तियों को मेरे घर भिजवा दिया।
    आते ही वे दोनों व्यक्ति काम में लग गए। फटाफट पुट्टी का काम उन्होंने शुरू कर दिया। रंग रोगन का भी काम साथ-साथ चालू कर दिया। मुश्किल से 4 दिन में पूरा का पूरा काम कंप्लीट हो गया। उन्होंने पारिश्रमिक के रूप में वैसे भी बहुत नॉमिनल राशि ही ली। कहां तो ठेकेदार हजारों की बात कर रहा था और कहां इन दोनों ने मात्र ₹1200 में पूरा काम निपटा दिया। मैं उनके प्रति बहुत शुक्रगुज़ार थी। उन्होंने संकट में आकर जिस तरह से बड़े अच्छे ढंग से पूरा काम निपटाया था वह क़ाबिले तारीफ़ था। उनका काम ठेकेदार के आदमियों से किसी भी मायने में उन्नीस नहीं बल्कि बीस ही था। बाद में जिसने भी देखा तो उसने बहुत अच्छी चिकनी पुट्टी और उस पर की गई पुताई की तारीफ़ ही की। 
   अब सोचती हूं तो लगता है कि बात विश्वास की होती है, भरोसे की होती है। यदि हम किसी पर भरोसा करते हैं और वह उस भरोसे पर खरा नहीं उतरता तो बहुत दुख पहुंचता है। भरोसा तोड़ने वाले व्यक्ति हमेशा के लिए हमारी नज़रों से गिर जाते हैं। और विश्वास निभाने वाले, भरोसा सलामत रखने वाले व्यक्ति हमेशा अपनी अच्छाई के कारण याद आते हैं। व्यक्ति कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। बड़ा ठेकेदार धोखा दे जाता है, जबकि छोटे काम करने वाले व्यक्ति छोटे काम को बड़ा काम मानते हुए बड़ी लगन के साथ करते हैं । मुझे स्मरण आ रहा है रामचरितमानस की इन पंक्तियों का -
बाँधा सेतु नील नल नागर। राम कृपाँ जसु भयउ उजागर॥
बूड़हिं आनहि बोरहिं जेई। भए उपल बोहित सम तेई॥
अर्थात् चतुर नल और नील ने सेतु बाँधा। राम की कृपा से उनका यह उज्ज्वल यश सर्वत्र फैल गया। जो पत्थर आप डूबते हैं और दूसरों को डुबा देते हैं, वे ही जहाज के समान स्वयं तैरने वाले और दूसरों को पार ले जाने वाले हो गए।

   रामकथा का एक प्रमुख प्रसंग है लंका तक पहुंचने के लिए राम की वानर सेना द्वारा समुद्र पर सेतु का निर्माण करना। इस कार्य को दो वानर योद्धाओं नल और नील की मार्ग निर्देशन में पूरा किया गया था।
    दरअसल सीता को लंकापति रावण द्वारा अपहृत कर लिए जाने और सीता को रावण के चंगुल से मुक्त कराने हेतु राम ने समुद्र पार कर लंका जाने का निश्चय किया। राम ने सागर पार जाने का साधन न होने पर चिंता व्यक्त करते हुए अपने सभी साथियों को सभा में एकत्रित किया। जिसमें उन्होंने लंकापति रावण के भाई विभिषण जो अब तक उनकी शरण में आ चुके थे, को उनकी वानर सेना को मायावी शक्तियां सिखाने का अनुग्रह किया। ताकि वानर सेना उन शक्तियों की मदद से आकाश मार्ग द्वारा लंका पहुंच सके। किन्तु इस पर राम को उत्तर देते हुए विभिषण ने कहा कि, “हे प्रभु आसुरी माया राक्षसों के लिए तो सुलभ है, परंतु वानर तथा मानव इन्हें सरलता से प्राप्त नहीं कर सकते।” विभिषण की यह बात सुनकर राम ने उसे कोई अन्य उपाय सुझाने को कहा, ताकि वे यथाशीघ्र  लंका पहुंच सकें और सीता को रावण के चंगुल से छुड़ा सकें।
      विभिषण ने राम को सुझाव दिया कि राम स्वयं समुद्र देवता वरुण देव से रास्ता मांगें तो कार्य सुगम हो जाएगा। साथ ही उन्हें यह भी बताया कि इस समुद्र अर्थात् सागर का निर्माण राम के ही पूर्वज एवं इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर ने ही किया था। चूंकि लक्ष्मण स्वभाव से थोड़ा उग्र थे, इसलिए विभिषण द्वारा दी गई यह सलाह उन्हें पसंद नहीं आई और उन्होंने इसका विरोध करते हुए राम को अपने बाण से संपूर्ण सागर को सूखा देने के लिए कहा।
     मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने यह सुझाव नहीं मानते हुए अपने भ्राता लक्ष्मण को समझाया और कुशा के आसन पर बैठकर अन्न जल त्यागकर समुद्र देवता वरुण की आराधना प्रारंभ कर दी। तीन दिन व्यतीत हो गए किन्तु तक जब समुद्र देवता वरुण उनके समक्ष जब प्रकट नहीं हुए तो राम के धैर्य का बांध टूट गया और उन्होंने लक्ष्मण द्वारा दिए गए सुझाव को स्वीकार करते हुए धनुष पर ब्रह्मास्त्र साध लिया। राम का यह क्रोधित रूप देखकर समुद्र देवता अत्यंत भयभीत हो गए और राम के समक्ष प्रकट हो कर उनसे क्षमा याचना करने लगे। शरणागत वत्सल राम ने उसी क्षण समुद्र देवता को क्षमा कर दिया और सागर पार करने में समुद्र देवता वरुण की सहायता मांगी।
    तब वरुण ने ऐसा कर पाने में अपनी असमर्थता बताई। और बताया कि वानर सेना में ही नल और नील नामक दो वानर इस सागर को पार करवाने में सबसे बड़े सहायक बन सकते हैं। समुद्र देवता वरुण ने राम को बताया कि नल और नील विश्वकर्मा के पुत्र हैं, जिनके द्वारा फेंके हुए पत्थरों से सेतु का निर्माण किया जा सकता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार नल और नील को ये श्राप है कि उनके द्वारा फेंके गई कोई भी वस्तु जल में डूबेगी नहीं। नल और नील जब छोटे थे तो बालपन की शरारतों के चलते ऋषि-मुनियों को बहुत परेशान किया करते थे और अक्सर उनकी चीजों को उठा कर समुद्र में फेंक देते थे। इन दोनों बच्चों से परेशान ऋषि-मुनियों ने तंग आकर इन्हें श्राप दिया था कि जो भी चीज यह पानी में फेकेंगे वह डूबेगी नहीं। साथ ही यह भी श्राप दिया कि वे अपने इस श्राप के बारे में स्वयं किसी से कुछ भी कह नहीं पाएंगे।
यह सुन कर राम ने सेतु निर्माण के लिए रामेश्वरम में मिट्टी का शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की और नल तथा नील वानरों से सेतु निर्माण हेतु अनुरोध किया। 

तुलसीदास रचित रामचरित मानस के सुंदरकांड में सेतु निर्माण का वर्णन है जिसमें नल और नील दोनों का उल्लेख है -
नाथ नील नल कपि द्वौ भाई। लरिकाईं रिषि आसिष पाई॥
तिन्ह कें परस किएँ गिरि भारे। तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे॥

अर्थात् समुद्र ने राम से कहा कि हे नाथ! नील और नल दो वानर भाई हैं। उन्होंने लड़कपन में ऋषि से आशीर्वाद पाया था। उनके स्पर्श कर लेने से ही भारी-भारी पहाड़ भी आपके प्रताप से समुद्र पर तैर जाएँगे।

सिंधु बचन सुनि राम सचिव बोलि प्रभु अस कहेउ।।
अब बिलंबु केहि काम करहु सेतु उतरै कटकु॥
अर्थात् समुद्र के वचन सुनकर प्रभु श्री रामजी ने मंत्रियों को बुलाकर ऐसा कहा- अब विलंब किसलिए हो रहा है? सेतु तैयार करो, जिसमें सेना उतरे।

जामवंत बोले दोउ भाई। नल नीलहि सब कथा सुनाई॥
राम प्रताप सुमिरि मन माहीं। करहु सेतु प्रयास कछु नाहीं।।
अर्थात् जाम्बवंत ने नल-नील दोनों भाइयों को बुलाकर उन्हें सारी कथा कह सुनाई और कहा- मन में राम के प्रताप को स्मरण करके सेतु तैयार करो, रामप्रताप से कुछ भी परिश्रम नहीं होगा।

धावहु मर्कट बिकट बरूथा। आनहु बिटप गिरिन्ह के जूथा॥
सुनि कपि भालु चले करि हूहा। जय रघुबीर प्रताप समूहा॥
अर्थात् विकट वानरों के समूह दौड़ जाइए और वृक्षों तथा पर्वतों के समूहों को उखाड़ लाइए। यह सुनकर वानर और भालू हूह की हुँकार करके और रघुवीर के प्रताप समूह की जय पुकारते हुए चले।

अति उतंग गिरि पादप लीलहिं लेहिं उठाइ।
आनि देहिं नल नीलहि रचहिं ते सेतु बनाइ।।
   अर्थात् बहुत ऊँचे-ऊँचे पर्वतों और वृक्षों को खेल की तरह ही उखाड़कर उठा लेते हैं और ला-लाकर नल-नील को देते हैं। वे अच्छी तरह गढ़कर सुंदर सेतु बनाते हैं।

सैल बिसाल आनि कपि देहीं। कंदुक इव नल नील ते लेहीं॥
देखि सेतु अति सुंदर रचना। बिहसि कृपानिधि बोले बचना॥
अर्थात् वानर बड़े-बड़े पहाड़ ला-लाकर देते  और नल-नील उन्हें गेंद की तरह ले लेते। सेतु की अत्यंत सुंदर रचना देखकर कृपासिन्धु राम हँसकर वचन बोले-।

परम रम्य उत्तम यह धरनी। महिमा अमित जाइ नहिं बरनी॥
करिहउँ इहाँ संभु थापना। मोरे हृदयँ परम कलपना॥
अर्थात् यह भूमि परम रमणीय और उत्तम है। इसकी असीम महिमा वर्णन नहीं की जा सकती। मैं यहाँ शिव शंभु की स्थापना करूँगा। मेरे हृदय में यह महान्‌ संकल्प है।

वाल्मीक रामायण में यह उल्लेख मिलता है कि सेतु लगभग पांच दिनों में बन गया जिसकी लम्बाई सौ योजन और चौड़ाई दस योजन थी। रामायण में इस पुल को ‘नल सेतु’ की संज्ञा दी गई है। नल के निरीक्षण में वानरों ने बहुत प्रयत्न पूर्वक इस सेतु का निर्माण किया था।

राम को समुद्र देवता वरुण देव पर विश्वास था कि वे उन्हें समुद्र पार कर लंका जाने में सहायता करेंगे। किन्तु समुद्र देवता वरुण द्वारा असमर्थता प्रकट करने पर राम के सहायक बने नल और नील वानर, जिन्होंने रामेश्वरम से लंका तक रामसेतु निर्माण कर सीता को रावण के चंगुल से मुक्त कराने में अपनी अहम भूमिका निभाई। रामसेतु छोटे वानरों द्वारा किए गए एक बहुत बड़े काम का प्रत्यक्ष प्रमाण है। कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता और न ही उसे करने वाले छोटे या बड़े होते हैं। सबसे बड़ा होता है विश्वास या भरोसा। विश्वास है तो कोई कार्य दुष्कर नहीं। 

और अंत में प्रस्तुत हैं मेरी काव्यपंक्तियां -

मिल कर लिखें चलो हम, विश्वास की ग़ज़ल 
कोई कहीं न गाए, संत्रास की ग़ज़ल 

है आज वेदना की सत्ता तो क्या हुआ !
होगी धरा के लब पर उल्लास की ग़ज़ल

'वर्षा' की ये दुआ है छल-छद्म ना रहे
गूंजे हरेक दिल में मधुमास की ग़ज़ल

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14 comments:

  1. बहुत -बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार प्रिय मीना जी 🌹🙏🌹

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  2. विश्वास ही मनुष्य को मनुष्य से जोड़े रखता है...
    बेहतरीन लेख 👌🙏👌
    हार्दिक बधाई 🌹🌹🌹

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    1. बहुत धन्यवाद प्रिय डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ❤️🌹

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  3. सुंदर और सारगर्भित लेख..।

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय जिज्ञासा जी 🌹❤️

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  4. बहुत धन्यवाद जोशी जी 🙏

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  5. बेहतरीन लेख आदरणीया।

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी 🙏

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  6. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी 🙏

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  7. मिल कर लिखें चलो हम, विश्वास की ग़ज़ल
    कोई कहीं न गाए, संत्रास की ग़ज़ल
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर... लाजवाब।

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    1. बहुत शुक्रिया सुधा जी 🙏

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  8. जीवन में घटित वाकयों के माध्यम से विश्वास पर आपने सुंदर व्याख्यात्मक लेख लिखा है।
    साथ ही रामचरितमानस के इस शानदार प्रसंग ने इसे अभिनवता प्रदान की है।
    सुंदर प्रस्तुति।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको 🍁🙏🍁

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