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Wednesday, December 2, 2020

बुधवारीय स्तम्भ | विचार वर्षा 27 | मिथक, महिलाएं और त्रिजटा | डॉ. वर्षा सिंह

प्रिय मित्रों, "विचार वर्षा"...   मेरे इस कॉलम में आज पढ़िए " मिथक, महिलाएं और त्रिजटा" ...अपने विचारों से अवगत कराएं ...और शेयर करें 🙏
हार्दिक धन्यवाद युवा प्रवर्तक 🙏🌹🙏
दिनांक 02.12.2020

मित्रों, आप मेरे इस कॉलम को इस लिंक पर भी जाकर पढ़ सकते हैं-

बुधवारीय स्तम्भ : विचार वर्षा

      मिथक, महिलाएं और त्रिजटा

              -     डॉ. वर्षा सिंह

     पिछले दिनों देखी एक शार्ट फिल्म का सार यही था कि फिल्म की नायिका की अंतरंग सखी ही उसे धोखा दे देती है। इसी प्रकार एक टीवी सीरियल में यह दिखाया गया था कि सीरियल की नायिका उसके आसपास की महिलाओं द्वारा रचे गए षड्यंत्र के कारण अपमानित हो कर घर छोड़ने को विवश हो जाती है। एक और टीवी सीरियल में घर के पुरुषों की दृष्टि में महिलाओं को नीचा दिखाने के लिए महिलाओं के द्वारा ही आपस में तरह-तरह के षड्यंत्र किया जाना दिखाया गया था। अक्सर यह कहा-सुना जाता है कि "स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है।" विशेष रूप से सास-बहू, ननद-भाभी, जेठानी-देवरानी, सखी-सहेलियों के आपसी व्यवहार के उदाहरण देकर भिन्न-भिन्न वाकिए सुनाए जाते हैं। मुझे लगता है कि दरअसल बचपन से ही हमारे दिलों दिमाग में इस प्रकार की बातें भर दी जाती हैं, ऐसी कथा कहानियां सुनाई जाती हैं कि हम स्त्रियों के आपसी व्यवहार को हमेशा शक की नजरों से ही देखते हैं। यदि कभी महिलाओं में आपसी प्रेमभाव नजर आता है तो उसे हम आश्चर्य के तौर पर लेते हुए स्थान- स्थान पर उसका उदाहरण पेश करते हैं, जबकि अनेक प्रकरणों में भाई -भाई, चाचा -भतीजा साले- जीजा इत्यादि के आपसी संबंध बुरे होने पर भी "पुरुष ही पुरुष का दुश्मन होता है" जैसी किसी प्रकार की कोई कहावत नहीं बनाई गई है। पुरुषों के आपसी संबंध कैसे भी क्यों न हों किसी मिथक धारणाओं का आधार नहीं बनते हैं। सम्भवतः यह पुरुष सत्तात्मक सोच का ही दुश्परिणाम है। हमारे टीवी सीरियल्स, चैनलों और ओटीटी प्लेटफार्म के ज़रिए परोसे जाने वाले शोज़ आदि भी महिला को महिला का मददगार दिखाने में कोताही बरतते हैं। महिला को महिला का दुश्मन बताने वाले मिथक को बल देने वाली अनेक कथाएं गढ़ी जाती हैं। ऐसी बहुत कम कथाएं रची जाती हैं जिनमें एक महिला किसी दूसरी महिला के प्रति निःस्वार्थ भावना से सहायक सिद्ध हो। 
  यह सर्वविदित है कि महिलाओं में ममता, करुणा का भाव पुरुषों की अपेक्षा कहीं ज़्यादा ही रहता है। तो प्रश्न यह उठता है कि क्या महिलाएं, महिलाओं के प्रति बैर भावना रखती हैं और क्या वे अपना ममत्व, अपनी करुणा सिर्फ़ पुरुषों पर ही लुटाती है ? हरगिज़ नहीं। यदि किसी मिथकीय धारणा से ग्रसित हुए बिना इस बात की पड़ताल करें तो हमें महिलाओं द्वारा महिलाओं की निःस्वार्थ भावना से की गई सहायता के भी अनेक उदाहरण मिल जाएंगे।
   अभी पिछले दिनों ही यह समाचार अनेक समाचार माध्यमों में प्रमुखता से प्रस्तुत किया गया था कि मुंबई की महिला वकील मृणालिनी देशमुख ने यौन उत्पीड़न और हिंसा पीड़ितों को नि:शुल्क कानूनी सहायता मुहैया कराने का बीड़ा उठाया है। वहीं भारत में चल रहे 'मीटू' अभियान के अंतर्गत स्वरा भास्कर और मलाइका अरोड़ा जैसी बॉलीवुड हस्तियां अपने अनुभवों को साझा करने वाली महिलाओं के समर्थन में आगे आई हैं। 
    3 वर्ष पूर्व की एक घटना मुझे याद आ रही है, जिसमें एक पाकिस्तानी महिला नागरिक हिजाब आसिफ ने भारत में इलाज कराने के लिए एक पाकिस्तानी सिटीजन के एप्लिकेशन पर महिलाओं के हितरक्षण में अग्रणी तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री सुषमा स्वराज को ट्वीट कर मदद मांगी थी। पाकिस्तानी शख्स भारत आना चाहता है, लेकिन उसे मेडिकल वीजा नहीं मिल पा रहा है। सुषमा ने हिजाब को निराश नहीं किया और उन्होंने इस्लामाबाद में इंडियन हाई कमीशन को पाकिस्तानी सिटीजन को भारत का वीजा देने का निर्देश दिया है। सुषमा स्वराज के इस बर्ताव की तारीफ में हिजाब ने एक अन्य ट्वीट भी किया। जिसमें उसने लिखा था, "आपको मैं क्या कहूं? सुपरवुमन? या भगवान? आपकी उदारता का बखान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। लव यू मैम, मेरी आंखों में आंसू हैं, आपकी तारीफ से खुद को रोक नहीं सकती।"
     हरियाणा के फतेहाबाद ज़िले के ग्राम समैन के युवक टीनू जांगड़ा ने 2016 फेसबुक पर प्यार के बाद कजाकिस्तान की युवती झाना के साथ शादी की थी। बाद में झाना अपने ससुराल भी आ गई। लेकिन उसके बाद वीजा अवधि न बढ़ने के कारण वह वापस चली गई। इस दौरान टीनू ने तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को ट्वीट किया कि विदेशी बहू अपने देश में आना चाहती है। लेकिन वीजा अवधि न होने के कारण परेशानी आ रही है। जिसके बाद सुषमा स्वराज ने संज्ञान लिया और विदेशी बहू को उसके ससुराल वापस लेकर आई। 
    पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी सहित आई.पी.एस. किरण बेदी, अधिवक्ता मीनाक्षी लेखी, अभिनेत्री शबाना आज़मी, सांसद प्रिया दत्त जैसे शीर्ष नामों के अलावा ऐसी बहुत सी महिलाओं के नाम मिल जाएंगे जिन्होंने स्वयं महिला होते हुए महिलाओं के हितों की सुरक्षा के लिए उल्लेखनीय कार्य किए हैं। ज़रूरत है ऐसे कार्यों, ऐसे चरित्रों, ऐसी घटनाओं को मीडिया माध्यमों के ज़रिए उजागर करने, बार-बार सामने लाने की जिनसे आमजन भी "महिला ही महिला की दुश्मन होती है" वाले मिथकजाल से बाहर आ कर यह वाक्य कण्ठस्थ कर ले कि "महिला किसी महिला की दुश्मन कभी नहीं होती।"
    मेरे घर की ही बात लीजिए, मेरी छोटी बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह महिलाओं की निःस्वार्थ भावना से सेवा करने में सदैव अग्रणी रहती हैं। मध्यप्रदेश के सागर ज़िले की बेड़िया जाति की पीड़ित-शोषित महिलाओं, महिला बीड़ी श्रमिकों के हितरक्षण हेतु मैंने शरद को सदैव संघर्षरत देखा है। शरद की इस संघर्षशीलता का दिग्दर्शन शरद की क़िताबों - "पिछले पन्ने की औरतें" और "पत्तों में क़ैद औरतें" में आसानी से मिलता है। स्वयं की स्थायी शासकीय सेवा को तिलांजलि दे कर परिवार, समाज सहित ग़ैर स्त्रियों के हितों के प्रति चिन्तनशील रहना शरद की ख़ूबी है और इस बात का प्रमाण भी कि महिलाएं महिलाओं की दुश्मन नहीं बल्कि अच्छी मित्र होती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं से शरद लगातार संपर्क करती रहती हैं। पहले स्वयं ग्रामीण क्षेत्रों की यात्राओं द्वारा, और अब कोरोना काल में घर से फोन के माध्यम से शरद ग्रामीण महिलाओं के समस्याओं के निदान हेतु कौंसलिंग करती हैं। शरद का एकमात्र उद्देश्य उन महिलाओं की मदद करना रहता है जो अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हैं और जो जागरूक तो हैं लेकिन अपने हितार्थ क़दम उठाने में हिचकती हैं। शरद यह बख़ूबी समझती हैं कि एक स्त्री किसी दूसरी स्त्री की हृदय की बात को, उसकी भावनाओं को, उसकी पीड़ा को जितनी गहराई से समझ सकती है उतना कोई पुरुष नहीं समझ सकता। स्त्री की स्त्री के प्रति मित्रता को किसी शक के दायरे में नहीं लाना चाहिए और इस मिथक से बाहर आ जाना चाहिए कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है।
     हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी स्त्रियों के स्त्रियों के प्रति उदारता, सहिष्णुता के अनेक उदाहरण मिल जाएंगे। राम कथा को ही लीजिए, त्रिजटा के नाम से भला कौन परिचित नहीं होगा! रामचरितमानस के सुंदरकांड में त्रिजटा का वर्णन करते हुए तुलसीदास लिखते हैं -
त्रिजटा नाम राच्छसी एका। 
राम चरन रति निपुन बिबेका॥ 
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना। 
सीतहि सेइ करहु हित अपना॥
  अर्थात् उनमें एक त्रिजटा नाम की राक्षसी थी। उसकी राम के चरणों में प्रीति थी और वह विवेक अर्थात् ज्ञान में निपुण थी। उसने सबों को बुलाकर अपना स्वप्न सुनाया और कहा- सीताजी की सेवा करके अपना कल्याण कर लो।

सपनें बानर लंका जारी। 
जातुधान सेना सब मारी॥ 
खर आरूढ़ नगन दससीसा। 
मुंडित सिर खंडित भुज बीसा॥
 अर्थात् स्वप्न में मैंने देखा है कि एक बंदर ने लंका जला दी। राक्षसों की सारी सेना मार डाली गई। रावण नग्नावस्था में है और एक गदहे पर सवार है। उसके सिर मुंडे हुए हैं, बीसों भुजाएँ कटी हुई हैं।

जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच॥
अर्थात् इसके बाद वे सब जहाँ-तहाँ चली गईं। सीताजी मन में सोच करने लगीं कि एक महीना बीत जाने पर नीच राक्षस रावण मुझे मारेगा॥

त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी।
मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥
अर्थात् सीताजी हाथ जोड़कर त्रिजटा से बोलीं- हे माता! आप मेरी विपत्ति की संगिनी हो। इस प्रकार दुखी सीता को त्रिजटा ने ढाढस बंधाया था और मातृवत् व्यवहार किया था। इसीलिये सीता त्रिजटा को माता का संबोधन देने लगीं थीं।
सीता ने त्रिजटा को माता का संबोधन दे कर प्रार्थना की थी कि - 
तजौं देह करु बेगि उपाई। 
दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई॥
     अर्थात् जल्दी कोई ऐसा उपाय करिए कि जिससे मैं शरीर छोड़ सकूँ। विरह असह्म हो चला है, अब यह सहा नहीं जाता।।
आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई॥
सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी॥
अर्थात् काठ लाकर चिता बनाकर सजा दें। हे माता! फिर उसमें आग लगा दें। हे सयानी! आप मेरी प्रीति को सत्य कर दें। रावण की शूल के समान दुःख देने वाली वाणी कानों से कौन सुने?

सुनत बचन पद गहि समुझाएसि। 
प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि॥
निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी। 
अस कहि सो निज भवन सिधारी।।
अर्थात् सीताजी के वचन सुनकर त्रिजटा ने चरण पकड़कर उन्हें समझाया और प्रभु का प्रताप, बल और सुयश सुनाया। त्रिजटा ने कहा- हे सुकुमारी! सुनो, रात्रि के समय आग नहीं मिलेगी। ऐसा कहकर वह अपने घर चली गई। …. और इस प्रकार त्रिजटा ने उस समय सीता के मन में आए अग्नि में जल कर स्वयं को नष्ट कर लेने वाले आत्महत्या के विचार को खण्डित कर दिया।

      रामकथा भारतीय संस्कृति के आदर्श का एक लिखित महाकाव्य है। त्रेतायुग की इस महागाथा में जहां पावन नगरी अयोध्या में रामराज्य में सभी नागरिक सुख और शांति से निवास करते थे। वहीं लंका में राक्षसराज रावण के राज में नागरिक उद्दंड और तामसिक मनोवृति के थे। किन्तु उसी लंका में विभीषण, मंदोदरी, त्रिजटा आदि विवेकशील, सह्दय, परोपकारी जन भी निवासरत थे।
   राक्षसराज रावण के आधिपत्य वाली लंका में राक्षसी त्रिजटा थी। यूं तो त्रिजटा भी राक्षस कुल की महिला थी, किन्तु उसकी प्रवृत्ति परहित संरक्षण के गुण से भरपूर थी। अयोध्या की कुलवधू सीता को जब राक्षसराज रावण ने अपहृत कर लंका में स्थित अशोकवाटिका में बंदिनी के रूप में रखा था, तब रावण ने अनेक राक्षस महिलाओं को सीता की सतत् निगरानी के लिए आदेशित किया था। इन्हीं  राक्षस महिलाओं की प्रमुख त्रिजटा थी। रावण ने सभी राक्षस महिलाओं को यह आदेश दिया था कि वे किसी भी तरह डरा-धमका कर सीता को रावण से विवाह करने लिए मना लें। रावण के इस आदेश के पालनार्थ सभी राक्षस महिलाएं सीता को मनाने हेतु तरह-तरह के कुटिल यत्न कर रही थीं। परोपकरी हृदय त्रिजटा से यह नहीं देखा गया। दुखी, पीड़ित, असहाय सीता की सहायता करने के उद्देश्य से उसने उपस्थित राक्षस महिलाओं को अपने एक सपने के बारे में बताया। उसने कहा कि मैने स्वप्न में देखा है कि राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ सीता को रावण के पुष्पक विमान में बिठाकर उत्तर की ओर ले जा रहे हैं। रावण नग्न है और गधे पर सवार होकर दक्षिण दिशा कि ओर जा रहा है। उसकी बीसों भुजाएं कटी हुई हैं। विभीषण को लंका का राज मिल गया है और उसके दूसरे भाई जमीन पर पड़े हुए हैं। लंका नगर पानी में डूब रहा है और एक वानर ने लंका में आग लगा दी है। राक्षसों की सेना का नाश कर दिया है। 
   
      जिन व्यक्तियों ने काशी भ्रमण किया होगा, विश्वनाथ मंदिर में दर्शन हेतु गए होंगे वे त्रिजटा माता मंदिर से परिचित होंगे। अनुश्रुतियों के अनुसार लंका युद्ध की विजय के उपरान्त त्रिजटा ने सीता से प्रार्थना की थी कि वे उसे भी अपने साथ अयोध्या ले चलें किन्तु सीता ने त्रिजटा को समझाया कि त्रिजटा काशी अर्थात् वाराणसी जाए जहां त्रिजटा को मोक्ष की प्राप्ति होगी। उस समय सीता ने त्रिजटा को यह वरदान भी दिया था कि वह काशी में हमेशा पूज्यनीय रहेगी। इसलिए आज भी काशी विश्वनाथ मंदिर के पास त्रिजटा का भी मंदिर है और भक्तगण आज भी माता त्रिजटा को फूल और हरी सब्जियां, विशेष रूप से मूली और बैंगन समर्पित करते हैं। जहां शिव जैसे अनादि देव विराजमान हैं वहीं काशी विश्वनाथ गली में ही राक्षस महिला त्रिजटा माता का मंदिर भी स्थित है। यह मंदिर साक्षी विनायक मंदिर में है। यह मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाने वाली देव दीपावली के अगले दिन त्रिजटा माता की पूजा से विशेष फल की प्राप्ति होती है। यह कहा जाता है कि वर्ष में एक दिन मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को जो त्रिजटा की पूजा करेगा उसे विशेष फल की प्राप्ति होगी। इसीलिए त्रिजटा  का एक मात्र प्राचीन मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के पास साक्षी विनायक मंदिर मे स्थित है। राक्षसकुल की होने के बावजूद त्रिजटा माता मंदिर में महिला श्रद्धालुओं की अटूट आस्था है। उनका मानना है कि जिस तरह त्रिजटा ने अशोक वाटिका में सीता की रक्षा की थी, उसी प्रकार उनकी और उनके सुहाग की भी रक्षा करेंगी। यह भी मान्यता है कि वर्ष में एक दिन माता त्रिजटा के दर्शन-पूजन मात्र से सभी दुःख-बाधाओं का नाश होता है और समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
 
     वाल्‍मीकी रामायण में भी त्रिजटा का चरित्र जन्‍म से राक्षसी होकर भी कर्म से मानवीय बताया गया है। वाल्मीकि रामायण के सुन्‍दरकांड के अनुसार अशोक वाटिका में सीता की रक्षा और सहायता करने तथा दिलासा देने का कार्य त्रिजटा ने किया था। त्रिजटा ने अन्य राक्षसियों को अपना स्वप्न सुनाते हुए रावण के कृत्य को निंदनीय बता कर रावण को भविष्य में मिलने वाले दण्ड कि वर्णन किया था। जिसे सुन कर भयभीत राक्षसियों ने सीता से बुरा व्यवहार करना त्याग दिया था - 
कृष्‍यमाणः स्‍त्रिया मुण्‍डो दुष्‍टः कृष्‍णाम्‍बर पुनः ।
रथेन स्‍वरयुक्तेन रक्तमाल्‍यानुलेपनः ॥
पिबंस्‍तैल हसन्‍नृत्‍यन्‌ भ्रान्‍ताचित्ता कुलेन्‍द्रियः ।
गर्दभेन ययों शीघ्रं दक्षिणां दिशमास्‍थितः॥

 अर्थात् एक स्‍त्री उस मुण्‍डित मस्‍तक रावण को कहीं खींचे लिये जा रही थी। उस समय मैंने पुनः देखा रावण ने काले कपड़े पहन रखे हैं । वह गधे जुते हुए रथ से यात्रा कर रहा था । लाल फूलों की माला और लाल चन्‍दन से विभूषित था। तेल पीता, हंसता और नाचता था वह गधे पर सवार होकर दक्षिण दिशा की ओर जा रहा था ।
         इतना ही नहीं त्रिजटा ने अन्‍य राक्षसियों को बताया कि उसने स्‍वप्‍न में मल के कीचड़ अर्थात् पंक में पड़ा देखा है। एक काले रंग की स्‍त्री जो कीचड़ में लिपटी हुई थी वह लाल वस्‍त्र पहने हुए रावण का गला बाँधकर दक्षिण दिशा में ले गई । उसने उसका भाई कुम्‍भकरण भी उसी अवस्‍था में देखा गया उसके पुत्र भी मुड़-मुड़ाये तेल में नहाये दिखाई दिये । राक्षसकुल के एक मात्र सम्मानित राजवंशी विभीषण श्‍वेत छत्र लगाये, श्‍वेत वस्‍त्र में श्‍वेत माला, श्‍वेत चन्‍दन और अंगराज धारण किए दिखाई दे रहे थे। विभीषण के पास शंख ध्‍वनि एवं नगाड़े बजाये जा रहे थे। वे चार दांत वाले दिव्‍य गज पर आरूढ़ आकाश में दिखाई दिए । त्रिजटा ने अन्य राक्षस महिलाओं को बताया कि - "मैंने स्‍वप्‍न में देखा है कि रावण की सुरक्षित लंका में राम के दूत बनकर आये हुए एक महावीर वानर ने लंका जलाकर भस्‍म कर दी है। अतः मेरी राक्षसकुलवंशी बहनों! जनकनंन्‍दिनी सीता को प्रणाम करो, वे अभिवादन करने मात्र से प्रसन्‍न हो जायेंगी तथा तुम्‍हारे जीवन की रक्षा करेंगी । तुम इन्‍हें भयभीत मत करो ।"
      त्रिजटा का चरित्र सीख लेने योग्य है। राक्षस कुल में जन्म लेने के बावजूद एक महिला होने के नाते त्रिजटा मानवीय गुणों से परिपूर्ण थी। राम की प्रतीक्षा में व्याकुल सीता के मन में शीतलता और सकारात्‍मकता का संचार करने वाली वह ममतामयी त्रिजटा इसीलिए वन्‍दनीय तथा अनुकरणीय है। हमारे टीवी सीरियल निर्माताओं को कुटिल चरित्र वाली महिलाओं के पात्र गढ़ने के बजाए त्रिजटा जैसी सद्चरित्र महिलाओं के जीवन पर पटकथाएं लिखवा कर समाज के हितार्थ श्रेष्ठ और स्वस्थ परम्परा की नींव रखने वाले धारावाहिकों का निर्माण करना चाहिए। उन्हें इस कलियुग में त्रेतायुग की राक्षस महिला त्रिजटा के सहिष्णुतापूर्ण मानवीय आचरण का स्मरण कर महिलाओं के व्यवहार के प्रति क़ायम मिथक को तोड़ने में अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

और अंत में प्रस्तुत हैं मेरे कुछ दोहे -

महिला की होती सदा, महिला अच्छी मित्र ।
दुश्मन जो दिखला रहे, मिथ्या हैं वे चित्र ।।

महिला ही है जानती, महिला-मन की थाह ।
हर विपदा से मुक्ति की, दिखलाती है राह ।।

करुणा, ममता, प्रेम की यह मूरत साकार ।
महिला है इस सृष्टि का अतुलनीय उपहार ।।

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6 comments:

  1. पुरुष भी होते हैं कभी कभी अच्छे मित्र महिला के :)

    सटीक विश्लेषण।

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    1. जी, बिलकुल सही... 😊

      हार्दिक धन्यवाद मेरा लेख पढ़ने और टिप्पणी करने के लिए आदरणीय जोशी जी 🙏

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  2. हार्दिक आभार मीना जी 🙏

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  3. बहुत धन्यवाद ओंकार जी 🙏

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  4. शोधात्मक आलेख, प्रभावशाली लेखन।

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    1. हार्दिक धन्यवाद शांतनु सान्याल जी 🙏

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