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Wednesday, February 17, 2021

बुधवारीय स्तम्भ | विचार वर्षा 38 | जयद्रथ, जयंत और स्त्री की मर्यादा | डॉ. वर्षा सिंह

प्रिय मित्रों, "विचार वर्षा"...   मेरे इस कॉलम में आज प्रस्तुत है मेरा आलेख -  "जयद्रथ, जयंत और स्त्री की मर्यादा"
हार्दिक धन्यवाद युवा प्रवर्तक 🙏🌹🙏
दिनांक 17.02.2021

मित्रों, आप मेरे इस कॉलम को इस लिंक पर भी जाकर पढ़ सकते हैं-

बुधवारीय स्तम्भ : विचार वर्षा

जयद्रथ, जयंत और स्त्री की मर्यादा
            - डॉ. वर्षा सिंह

   अभी पिछले दिनों मेरे एक परिचित अपनी बहन ज्योति (परिवर्तित नाम) के साथ पैदल कहीं जा रहे थे। रास्ते में उनका कोई मित्र मिल गया जिसके द्वारा हालचाल पूछने के कारण वे ज़रा पीछे अटक गए… ज्योति अकेली आगे बढ़ गई।  राह में सामने से आ रहे दो मनचले युवकों ने यह समझा कि ज्योति अकेली ही जा रही है। वे मनचले युवक ज्योति से छेड़खानी करने लगे। ज्योति ने मदद के लिए भाई को पुकारा। ज्योति की पुकार सुनकर भाई और उनके मित्र का ध्यान ज्योति पर गया। मनचले युवकों द्वारा ज्योति से छेड़खानी करता देख दोनों को बहुत गुस्सा आया। उन दोनों ने मनचले युवकों को पकड़कर उनकी जमकर पिटाई की और ज्योति से माफी मांगने के लिए कहा। मनचले युवक रोते हुए ज्योति के पैरों पर गिर कर माफी मांगते हुए कहने लगे कि बहन हमें माफ कर दो, अब दुबारा कभी ऐसा नहीं करेंगे...। तब भविष्य के लिए समझाइश देकर भाई और उनके मित्र ने उन मनचले युवकों को छोड़ दिया।
       वर्तमान समय में महिलाओं से छेड़खानी के अनेक प्रकरण आए दिन सामने आते हैं। प्राचीन ग्रंथों में भी महिलाओं के प्रति कतिपय मनचले और ढीठ क़िस्म के लोगों द्वारा छेड़खानी करने के प्रसंग मिलते हैं। 
    ऐसा ही एक प्रसंग है महाभारत महाकाव्य में मिलता है। जयद्रथ सिंधु देश का राजा था और उसका विवाह दुर्योधन की बहन दुशाला से हुआ था। इस तरह वह कौरवों और पाडवों का रिश्तेदार था। महाभारत कथा के अनुसार पांडव कौरवों की कुटिल चाल में फंस कर चौसर के खेल में अपना सब कुछ हार बैठे थे और शर्त का पालन करते हुए बारह साल का वनवास व्यतीत कर रहे थे, तब एक दिन जयद्रथ संयोगवश उसी जंगल से गुजर रहा था जहां पांडव निवास कर रहे थे। दिन का समय था और पांडवों की पत्नी द्रौपदी नदी किनारे से पानी भर कर लौट रही थी। जयद्रथ ने अकेला देख कर द्रौपदी से छेड़खानी करते हुए उसे अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों में फुसलाने और अपने साथ ले जाने का प्रयास किया। द्रौपदी ने अपनी मर्यादा, आपसी रिश्तों की मर्यादा और पांडवों के क्रोध तथा बाहुबल का वास्ता दे कर जयद्रथ को समझाया भी, चेतावनी भी दी, लेकिन जयद्रथ नहीं माना और द्रौपदी को बलपूर्वक अपहृत कर अपने रथ में बिठा कर अपने साथ ले जाने लगा। पांडवों को जब इस बात की सूचना मिली तो उन्होंने जयद्रथ का पीछा किया  और उसके रथ को बीच रास्ते में रोक लिया। क्रोध के कारण भीम जयद्रथ का वध करने को उद्यत हो उठा, लेकिन चूंकि जयद्रथ कौरव एवं पाण्डवों की इकलौती बहन दुशाला का पति था, इसलिए अर्जुन ने भीम को ऐसा करने से रोक दिया। भीम ने अपना क्रोध शांत करने के लिए जयद्रथ के सिर के बाल मूंड कर उसे छोड़ दिया।
    द्रौपदी के द्वारा तिरस्कार किए जाने और पांडवों से पराजित होने के बाद जयद्रथ स्वयं को अपमानित महसूस करने लगा। अपने कथित अपमान का बदला लेने के लिए जयद्रथ ने आदिदेव शिव की घोर तपस्या की और तपस्या से शिव के प्रसन्न होने पर उसने शिव से पांडवों पर जीत हासिल करने का वरदान मांगा। तब शिव ने कहा कि पांडवों से जीतना या उन्हें मारना किसी के वश में नहीं है लेकिन जीवन में एक दिन वह किसी युद्ध में अर्जुन को छोड़ बाकी सभी भाईयों पर भारी पड़ेगा। कालांतर में जयद्रथ को मिला यही वरदान अभिमन्यु के मृत्यु का कारण बना जिससे आहत अर्जुन ने ही कृष्ण की माया से जयद्रथ का वध किया, जिसकी एक अलग ही कथा है।
   रामकथा में भी रावण-प्रसंग से इतर स्त्री-मर्यादा से छेड़छाड़ का एक और प्रसंग जयंत का मिलता है। जयंत देवताओं के राजा इन्द्र का पुत्र था। वाल्मीकि रामायण सहित रामचरितमानस में इसका उल्लेख हुआ है। कैकेयी के वचन से निबद्ध अयोध्यानरेश दशरथ ने युवराज राम को चौदह वर्ष का वनवास दे दिया था। मर्यादापुरुषोत्तम राम ने पिता की आज्ञा का पालन कर वनगमन किया। राम की पतिव्रता सहचरी सीता स्वेच्छा से राम के साथ वन में गईं और अनुज लक्ष्मण ने भी स्वेच्छा से वनगमन स्वीकार किया। उसी दौरान एक दिन चित्रकूट पर्वत के वनों में विचरण करते हुए राम और सीता विश्राम कर रहे थे। तभी वहां से निकल रहे देवताओं के राजा इंद्र के पुत्र जयंत की कुदृष्टि सीता पर पड़ गई।
वाल्मीकि रामायण में इस प्रसंग में जयंत द्वारा बुरी नियत से सीता को अपनी चोंच से चोट पहुंचाने और राम द्वारा जयंत को दण्डित करने का उल्लेख है। जबकि आंशिक परिवर्तित रूप में रामचरितमानस के अरण्यकाण्ड में जयंत की कुटिलता और राम द्वारा उसे दण्डित किए जाने का प्रसंग है। तुलसीदास जी शिव -पार्वती संवाद के अंतर्गत इसका कथा का लेख किया है। वे कहते हैं -

एक बार चुनि कुसुम सुहाए। 
निज कर भूषन राम बनाए॥
सीतहि पहिराए प्रभु सादर। 
बैठे फटिक सिला पर सुंदर॥
अर्थात् एक बार सुंदर फूल चुनकर राम ने अपने हाथों से भाँति-भाँति के गहने बनाए और सुंदर स्फटिक शिला पर विराजमान सीता को यह गहने बड़े आदर के साथ पहनाए - 

सुरपति सुत धरि बायस बेषा। 
सठ चाहत रघुपति बल देखा॥
जिमि पिपीलिका सागर थाहा। 
महा मंदमति पावन चाहा।।
अर्थात् देवराज इन्द्र का मूर्ख पुत्र जयन्त कौए का रूप धरकर रघुपति राम का बल देखना चाहता था। जैसे महान मंदबुद्धि चींटी समुद्र का थाह पाना चाहती हो।

सीता चरन चोंच हति भागा। 
मूढ़ मंदमति कारन कागा॥
चला रुधिर रघुनायक जाना। 
सींक धनुष सायक संधाना॥
अर्थात् वह मूढ़, मंदबुद्धि कौआ सीता के चरणों में चोंच मारकर भागा। जब रक्त बह चला, तब  रघुनायक राम ने इस बात को जान कर धनुष पर सींक यानी सरकंडे के बाण का संधान किया।

अति कृपाल रघुनायक सदा दीन पर नेह।
ता सन आइ कीन्ह छलु मूरख अवगुन गेह॥
अर्थात् रघुनायक राम, जो अत्यन्त ही कृपालु हैं और जिनका दीनों पर सदा प्रेम रहता है, उनसे भी उस अवगुणों के घर मूर्ख जयन्त ने आकर छल किया।

प्रेरित मंत्र ब्रह्मसर धावा। 
चला भाजि बायस भय पावा॥
धरि निज रूप गयउ पितु पाहीं। 
राम बिमुख राखा तेहि नाहीं॥
अर्थात् मंत्र से प्रेरित होकर वह ब्रह्मबाण दौड़ा। कौआ भयभीत होकर भाग चला और वह अपना असली रूप धरकर पिता इन्द्र के पास गया, पर राम का विरोधी जानकर इन्द्र ने उसको नहीं रखा।

भा निरास उपजी मन त्रासा। 
जथा चक्र भय रिषि दुर्बासा॥
ब्रह्मधाम सिवपुर सब लोका। 
फिरा श्रमित ब्याकुल भय सोका॥
अर्थात् तब जयंत निराश हो गया, और उसके मन में भय उत्पन्न हो गया, जैसे दुर्वासा ऋषि को चक्र से भय हुआ था। वह ब्रह्मलोक, शिवलोक आदि समस्त लोकों में थका हुआ और भय-शोक से व्याकुल होकर भागता फिरा।

काहूँ बैठन कहा न ओही। 
राखि को सकइ राम कर द्रोही ॥
मातु मृत्यु पितु समन समाना। 
सुधा होइ बिष सुनु हरिजाना॥
अर्थात् पास रखना तो दूर, किसी ने उसे बैठने तक के लिए नहीं कहा। राम के द्रोही को भला कौन रख सकता है? काकभुशुण्डि कहते हैं- हे गरुड़ ! सुनिए, उसके लिए अर्थात् रामद्रोही के लिए माता मृत्यु के समान, पिता यमराज के समान और अमृत विष के समान हो जाता है।

मित्र करइ सत रिपु कै करनी। 
ता कहँ बिबुधनदी बैतरनी॥
सब जगु ताहि अनलहु ते ताता।
जो रघुबीर बिमुख सुनु भ्राता॥
अर्थात् मित्र सैकड़ों शत्रुओं की सी करनी करने लगता है। देवनदी गंगा उसके लिए यमपुरी की नदी हो जाती है। हे भाई! सुनिए, जो  रघुवीर के विमुख होता है, समस्त जगत उनके लिए अग्नि से भी अधिक गरम जलाने वाला हो जाता है।

नारद देखा बिकल जयंता। 
लगि दया कोमल चित संता॥
पठवा तुरत राम पहिं ताही। 
कहेसि पुकारि प्रनत हित पाही।।
अर्थात् नारद ने जयन्त को व्याकुल देखा तो उन्हें दया आ गई, क्योंकि संतों का चित्त बड़ा कोमल होता है। उन्होंने उसे समझाकर तुरंत राम के पास भेज दिया। उसने अर्थात् जयंत ने जाकर पुकारकर कहा- हे शरणागत के हितकारी! मेरी रक्षा कीजिए।

आतुर सभय गहेसि पद जाई। 
त्राहि त्राहि दयाल रघुराई॥
अतुलित बल अतुलित प्रभुताई। 
मैं मतिमंद जानि नहीं पाई॥
अर्थात् आतुर और भयभीत जयन्त ने जाकर राम के चरण पकड़ लिए और कहा- हे दयालु रघुनाथ! रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए। आपके अतुलित बल और आपकी अतुलित प्रभुता, सामर्थ्य को मैं मन्दबुद्धि जान नहीं पाया था।

निज कृत कर्म जनित फल पायउँ। 
अब प्रभु पाहि सरन तकि आयउँ॥
सुनि कृपाल अति आरत बानी। एकनयन करि तजा भवानी॥
अर्थात् अपने कर्म से उत्पन्न हुआ फल मैंने पा लिया। अब हे प्रभु! मेरी रक्षा कीजिए। मैं आपकी शरण में आया हूँ। शिव कहते हैं- हे पार्वती! कृपालु राम ने उसकी अत्यंत आर्त्त दुःख भरी वाणी सुनकर उसे एक आँख का काना करके छोड़ दिया।

कीन्ह मोह बस द्रोह जद्यपि तेहि कर बध उचित।
प्रभु छाड़ेउ करि छोह को कृपाल रघुबीर सम॥
अर्थात् उसने मोहवश द्रोह किया था, इसलिए यद्यपि उसका वध ही उचित था, पर प्रभु ने कृपा करके उसे छोड़ दिया। राम के समान कृपालु और कौन होगा ?

  त्रेतायुग और द्वापरयुग के तो एकाध प्रसंग मिलते हैं किन्तु इस कलियुग में देवभूमि भारत में आए दिन कहीं न कहीं से जयद्रथ और जयंत सरीखे बुरी नियत वाले मनचलों द्वारा युवतियों के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं सामने आती रहती हैं। राह चलते अकेली महिलाओं से छेड़खानी करना आम बात हो गई है। साथ ही अनेक बार युवती के साथ वाले रिश्तेदारों को इग्नोर कर युवती से छेड़खानी के मामले भी अक्सर सुनने-पढ़ने में आते हैं।
  पहले छेड़छाड़ के मामले में अधिकतम दो साल कैद की सजा का प्रावधान था, लेकिन निर्भया केस के बाद कानून में बदलाव हुआ है और अब छेड़छाड़ को विस्तार से व्याख्या करते हुए उसमें सज़ा के सख़्त प्रावधान किए गए। 2013 में जब कानून में संशोधन हुआ है तो उसके बाद के मामलों में छेड़छाड़ के लिए नए कानून के तहत सज़ा का प्रावधान रखा गया।
    कानूनी जानकारों के अनुसार छेड़छाड़ के मामले को अब अपराध की गंभीरता के हिसाब से व्याख्या की गई है और अलग-अलग सबसेक्शन में सज़ा का अलग-अलग प्रावधान किया गया है। भारतीय दंड संहिता के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की मर्यादा को भंग करने के लिए उस पर हमला या जोर जबरदस्ती करता है, तो उस पर धारा 354 लगाई जाती है। आईपीसी की धारा 354 के तहत छेड़छाड़ के मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम 5 साल क़ैद की सज़ा का प्रावधान किया गया है। साथ ही कम से कम एक साल कैद की सज़ा का प्रावधान किया गया है और इसे गैर-जमानती अपराध माना गया है। इस धारा का लक्ष्य स्त्री के अस्तित्व की रक्षा करना है तथा उसके आत्मसम्मान और उसकी अस्मिता की रक्षा करना है।
   प्रशासनिक स्तर पर स्कूल, काॅलेज, भीड़भाड़ वाले बाजार एवं अन्य इलाकों में महिलाओं के साथ होने वाली छेड़खानी, स्नेचिंग एवं छींटाकशी करने वालों की निगरानी के लिए पुलिस प्रशासन द्वारा समय- समय पर प्रत्येक थाने पर विशेष टीमें गठित की जाती हैं। इन टीमों में दो महिला पुलिस कर्मचारी और दो पुरुष पुलिस कर्मचारी शामिल किए जाते हैं जो अपने-अपने क्षेत्र में ऐसे भीड़-भाड़ वाले स्थानों जैसे शिक्षण संस्थान, मुख्य बाजार बस अड्डा, सार्वजनिक पार्क आदि स्थानों पर लगातार निगरानी रखी जाती है। टीमों के गठन का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के होने वाली घटनाओं और उत्पीड़न को रोकना रहता है।
    इसके साथ ही मध्य प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखकर राज्य स्तरीय महिला अपराध हेल्पलाइन स्थापित की गई है, जिसका फोन नम्बर 1090 है। इस नम्बर पर कहीं से भी कॉल किया जा सकता है। कॉल मिलने पर पुलिस द्वारा तत्काल सहायता मुहैया कराई जाती है।

    और अंत में प्रस्तुत हैं मेरे कुछ दोहे -

कुटिलभाव से जो करे, नारी का अपमान।
ऐसे जन का तोड़िए, दण्डित कर अभिमान।।

कभी न हो खण्डित तनिक, इतना रखिए ध्यान।
मां, बेटी, भाभी, बहन, पत्नी का सम्मान।।

पूजनीय नारी सदा, देवी का प्रतिमान।
"वर्षा" नर वे अधम हैं, जिन्हें नहीं संज्ञान।।

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8 comments:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक बुधवासरीय अंक।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय 🙏
      यह आपकी सदाशयता है कि आपने अपनी व्यस्त दिनचर्चा से समय निकाल कर मेरे लेख को पढ़ा और उस पर आपने विचार प्रकट किए।
      पुनः हार्दिक आभार 🙏

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  2. ज्ञान वर्धक लेख । हर काल खंड में जयद्रथ और जयंत होते रहे हैं ।खाली छेड़खानी ही नहीं देवताओं ने स्त्रीत्व को भी भंग किया । दोहे सटीक हैं ।

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    1. जी... आदरणीया संगीता जी, बहुत आत्मीय आभार आपके प्रति 🙏

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  3. ज्ञानवर्धक लेख जिसमें स्त्री सशक्तिकरण के प्रति जागरूकता का पक्ष रखा है आपने । अंत में आपके द्वारा सृजित सटीक दोहों ने लेख को सशक्त बनाया है । सस्नेहाभिवादन वर्षा जी🌹🙏🌹

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    1. आपकी इस मूल्यवान टिप्पणी के लिए बहुत आत्मीय आभार प्रिय मीना जी 🙏

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