प्रिय ब्लॉग पाठको, "विचार वर्षा"... मेरे इस कॉलम में आज प्रस्तुत है मेरा आलेख - "गौ संरक्षण और देवताओं की माता अदिति"
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दिनांक 10.02.2021
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बुधवारीय स्तम्भ : विचार वर्षा
गौ संरक्षण और देवताओं की माता अदिति
- डॉ. वर्षा सिंह
अक्सर यह समाचार पढ़ने-सुनने को मिलता है कि आए दिन किसी न किसी सड़क पर वाहनों की टक्कर से गाय, बछड़े और अन्य मवेशी घायल हो गए हैं। अनेक गौसेवा संगठन इस मौके पर रोष जताते हैं और प्रशासनिक और नपा, नगर निगम आदि के अधिकारियों को गायों की सुरक्षा के लिए ज्ञापन देते हैं। कुछ संगठनों के द्वारा खुद आवारा गायों को पकड़कर कांजी हाउस में छोड़ा जाता है, या गौशाला के सुपुर्द किया जाता है। बेसहारा गौवंश को सहारा देने के लिए सरकार की ओर से भी गौशालाओं को बजट मुहैया करवाया जाता है। परंतु इसके बाद भी बेसहारा गौवंश को गौशालाओं में इसलिए सहारा नहीं मिल पाता क्योंकि कामधेनु योजना आदि सरकारी योजनाओं में मिलने वाला बजट गौशालाओं के लिए पर्याप्त नहीं होता है। इन परिस्थितियों में अधिकतर गौशालाएं चन्दे पर ही निर्भर रहती हैं।
भारतीय संस्कृति में गौ को माता का स्थान दिया गया है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार जब आदिकाल में देव और दानवों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था तब श्री हरि विष्णु ने कच्छप अवतार लेकर सुमेरू पर्वत को धारण किया और वासुकी नाग को रज्जू के तौर पर प्रयोग में लाकर मंथन किया, जिसमें प्रथम हलाहल विष की ज्वाला से रक्षार्थ रत्नस्वरूपा कामधेनु प्रकट हुई जो सभी मनोकामनाओं, संकल्प और आवश्यकता पूर्ण करने में सक्षम थी। पौराणिक कथाओं में गौ के विषय में एक और कथा मिलती है। जब सृष्टि का प्रारम्भ हुआ तो ब्रह्मा ने मनु को सृष्टि रचना का आदेश दिया जिसके कारण हम मानव कहलाते हैं। मनु जिनका नाम पर्थु था उन्होंने गौमाता की स्तुति की और गौकृपा अनुसार गौदोहन किया और पृथ्वी पर कृषि का प्रारंभ किया। पर्थु मनु के नाम से यह धरा पृथ्वी कहलाई। प्राचीन ग्रंथों में यह लेख भी मिलता है कि यदि समस्त देवी- देवताओं एवं पितरों को एक साथ प्रसन्न करना हो तो गौभक्ति-गौसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है। गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता।
‘गौ मे माता ऋषभ: पिता में दिवं शर्म जगती मे प्रतिष्ठा।’
अर्थात् गाय मेरी माता और ऋषभ पिता हैं। वे इहलोक और परलोक में सुख, मंगल तथा प्रतिष्ठा प्रदान करें।
रामकथा में गौ के महत्व का वर्णन है। तुलसीदास ने रामचरितमानस के बालकाण्ड में लिखा है-
विप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुन गोपार।।
अर्थात् ब्राह्मण, गौ, देवता और संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार लिया। वे माया और उसके गुण (सत, रज, तम) और बाहरी तथा भीतरी इंद्रियों से परे हैं। उनका दिव्य शरीर उनकी अपनी इच्छा से ही निर्मित है।
इतना ही नहीं, बल्कि रघुवंश के राजा दिलीप गौसेवा के पर्याय माने जाते हैं। यहां तक कि रामजन्म सुरभि गाय के दुग्ध द्वारा तैयार खीर से माना गया है।
गाय-बैल की महिमा के बारे में हमारे प्राचीन वेदों में भी अनेक ऋचाएं, श्लोक आदि मिलते हैं। अर्थववेद में कहा गया है-
मित्र ईक्षमाण आवृत आनंद:युज्यमानों
वैश्वदेवोयुक्त: प्रजापति विर्मुक्त: सर्पम्।
एतद्वैविश्वरूपं सर्वरूपं गौरूपम् उपैनंविश्वरूपा:
सर्वरूपा: पशवस्तिष्ठन्ति य एवम् वेद।।
अर्थात् देखते समय गौ मित्र देवता है, पीठ फेरते समय आनंद है। हल तथा गाड़ी में जोतते समय बैल विश्वदेव है। जो जाने पर प्रजापति तथा जब खुला हो तो सबकुछ बन जाता है। यही विश्वरूप अथवा सर्वरूप है, यही गौरूप है। जिसे इस विश्वरूप का यर्थाथ ज्ञान होता है उसके पास विविध प्रकार के पशु रहते हैं।
बह्मवैर्वापुराण के कृष्णजन्म में गाय की महिमा का वर्णन है। गौवध का निषेध करते हुये वेद में कहा गया है-
माता रूद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यनाममृत्स्य नाभि:
प्रश्नु वोचं चिकितुषे जनायमा
गामनागादितिं वधिष्ट।
अर्थात गौ रूद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, अदितिपुत्रों की बहन तथा धृतरूप अमृत का कोश है। प्रत्येक विचारशील मनुष्य से यही कहना है कि निरपराध व अवध्य गौ का कोई वध न करे।
ऋग्वेद के ही मंडल 6, सूक्त 28 (1) में लेख है कि -
आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रन्त्सीदन्तु गोष्ठे रणयंत्वसमे ।
अर्थात् गाय हमारे घर आएं और हमारा कल्याण करें, वे हमारी गौशाला में बैठें एवं हमारे ऊपर प्रसन्न हों ।
अदिति संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ 'असीम' है। अदिति दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं और कश्यप ॠषि की पत्नी थीं। अदिति को 'देवमाता' कहा गया है । वरुण, आदित्य, रुद्र, इन्द्र आदि अदिति के पुत्र कहे जाते हैं। साथ ही अनेक पौराणिक कथाओं में अदिति को विष्णु सहित कई देवताओं की जननी माना गया है। अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है। तैंतीस देवताओं में अदिति के बारह पुत्र शामिल हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। बारह आदित्यों के अलावा आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनकुमार मिलाकर तैंतीस देवताओं का एक वर्ग है। यह माना जाता है कि अदिति आकाश को अवलंब प्रदान करती हैं, सभी जीवों का पालन और पृथ्वी का पोषण करती हैं। इस रूप में इन्हें गाय के रूप में भी दर्शाया गया है।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार समस्त देव कुलों को जन्म देने वाली अदिति देवियों की भी माता हैं। अदिति को लोकमाता भी कहा गया है। अदिति के पति ऋषि कश्यप ब्रह्मा के मानस पुत्र माने जाते हैं। मान्यता के अनुसार इन्हें अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है। इनकी माता 'कला' कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थीं।
अदिति के पुत्र विवस्वान् से वैवस्वत मनु का जन्म हुआ। महाराज मनु को इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रान्शु, नाभाग, दिष्ट, करुष और पृषध्र नामक दस श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई। अदितिपुत्र विवस्वान को ही सूर्य कहा गया है जिनकी आकाश में स्थित सूर्य ग्रह से तुलना की गई। सूर्यपुत्र कर्ण सहित सूर्य के कई अन्य भी पुत्र थे। कृष्ण की माता देवकी को अदिति का अवतार कहा जाता है। सूर्य के परिवार की विस्तृत कथा भविष्य पुराण, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण, मार्कण्डेय पुराण तथा साम्बपुराण में वर्णित है
ऋग्वेद में अदिति को माता के रूप में पूज्य मान कर मातृदेवी की स्तुति में बीस मंत्र कहे गए हैं। उन मन्त्रों में अदितिर्द्यौः ये मन्त्र अदिति को माता के रूप में प्रदर्शित करता है -
अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स-पिता स-पुत्रः ।
विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्।।
अर्थात् यह मित्रावरुण, अर्यमन्, रुद्रों, आदित्यों इंद्र आदि की माता हैं। इंद्र और आदित्यों को शक्ति अदिति से ही प्राप्त होती है। उसके मातृत्व की ओर संकेत अथर्ववेद (7.6.2) और वाजसनेयिसंहिता (21,5) में भी हुआ है। इस प्रकार उसका स्वाभाविक स्वत्व शिशुओं पर है और ऋग्वैदिक ऋषि अपने देवताओं सहित बार बार उसकी शरण जाता है एवं कठिनाइयों में उससे रक्षा की अपेक्षा करता है।
अदिति का अर्थ मुक्त रहना है। 'दिति' यानी बंधना और अदिति यानी पाप के बंधन से रहित होना। ऋग्वेद (1,162,22) में उससे पापों से मुक्त करने की प्रार्थना की गई है। कुछ अर्थों में उसे गौ का भी पर्याय माना गया है। ऋग्वेद का में कहा गया है -
मा गां अनागां अदिति वधिष्ट।।
अर्थात् गाय रूपी अदिति का वध मत करो।
कहा जाता है कि स्वर्ग में सत्ता के लोभ में दैत्यों और देवताओं में शत्रुता हो गई। दैत्यों और देवों के परस्पर अनेक युद्ध हुए। उन युद्धों दैत्यों ने देवताओं को पराजित कर दिया। सभी देव गण वनों में विचरण करने लगे। उनकी यह दुर्दशा देखकर अदिति और कश्यप भी दुःखी हुए। तब महर्षि नारद के द्वारा सूर्योपासना का उपाय बताया गया। अदिति ने अनेक वर्षों तक सूर्य की घोर तपस्या की। अदिति के तप से सूर्य देव प्रसन्न हो गए। उन्होंने साक्षात् दर्शन दिये और वरदान मांगने को कहा। तब अदिति ने सूर्य से यह वरदान मांगा कि - "आप मेरे पुत्र रूप में जन्म लें”। कालान्तर में सूर्य का तेज अदिति के गर्भ में प्रतिष्ठित हुआ किन्तु एक बार अदिति और कश्यप के मध्य कलह उत्पन्न हो गया। क्रोध में कश्यप अदिति के गर्भस्थ शिशु को “मृत” शब्द से सम्बोधित कर बैठे। उसी समय अदिति के गर्भ से एक प्रकाशपुंज बाहर आया। उस प्रकाशपुंज को देखकर कश्यप भयभीत हो गये। कश्यप ने सूर्य से क्षमा याचना की। उसी समय यह आकाशवाणी हुई कि – “आप दोनों इस पुंज का प्रतिदिन पूजन करें। उचित समय होते ही उस पुंज से एक पुत्ररत्न जन्म लेगा और आप दोनों की इच्छा को पूर्ण कर ब्रह्माण्ड में स्थित होगा।" तत्पश्चात कालांतर में उस पुंज से जो तेजस्वी बालक उत्पन्न हुआ, वही “आदित्य” या “मार्तण्ड” के नाम से विख्यात है। आदित्य का तेज असहनीय था। अतः युद्ध में दैत्य आदित्य के तेज को देखकर ही पलायन कर पाताललोक में चले गये। अन्त में आदित्य सूर्यदेव स्वरूप में ब्रह्माण्ड के मध्यभाग में स्थित हुए और ब्रह्माण्ड का संचालन करने लगे ।
रामचरितमानस के बालकाण्ड में तुलसीदास शिव- पार्वती सम्वाद अंतर्गत देवताओं के निवेदन पर श्रीहरि विष्णु के उद्गार प्रकट करते हैं -
जानि सभय सुर भूमि सुनि बचन समेत सनेह।
गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह॥
अर्थात् देवताओं और पृथ्वी को भयभीत जानकर और उनके स्नेहयुक्त वचन सुनकर शोक और संदेह को हरने वाली गंभीर आकाशवाणी हुई।
जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा।
तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा॥
अंसन्ह सहित मनुज अवतारा।
लेहउँ दिनकर बंस उदारा॥
अर्थात् हे मुनि, सिद्ध और देवताओं के स्वामियों! डरो मत। तुम्हारे लिए मैं मनुष्य का रूप धारण करूँगा और उदार पवित्र सूर्यवंश में अंशों सहित मनुष्य का अवतार लूँगा।
कस्यप अदिति महातप कीन्हा।
तिन्ह कहुँ मैं पूरब बर दीन्हा॥
ते दसरथ कौसल्या रूपा।
कोसलपुरीं प्रगट नर भूपा॥
अर्थात् कश्यप और अदिति ने बड़ा भारी तप किया था। मैं पहले ही उनको वर दे चुका हूँ। वे ही दशरथ और कौसल्या के रूप में मनुष्यों के राजा होकर राम अयोध्या में प्रकट हुए हैं।
सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर में अदिति स्वरूपा गौ सदैव पूज्यनीय मानी गई है। इस कलियुग में गौ पूज्यनीय तो मानी जाती है किन्तु गौ की रक्षा हेतु जनचेतना का अभाव दिखाई देता है। अपने भविष्य की रक्षा और स्वयं के कल्याण हेतु लोग भिखारिणी के समान दर-दर, द्वार-द्वार भटकती गायों को रोटी खिला कर लोग बहुधा अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं। किन्तु गौवंश के रक्षार्थ सार्थक क़दम उठाने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है। मध्यप्रदेश के सागर शहर के गौपुत्र कहे जाने वाले समाजसेवी सूरज सोनी विगत 12 वर्ष से गौमाता की रक्षाकार्य में तन, मन, धन से जुटे हुए हैं। गौरक्षा के प्रति उनकी लगन को देख कर उन्हें गौरक्षा कमांडो फोर्स के प्रदेशाध्यक्ष का दायित्व भी सौंपा गया है। गौरक्षा कमांडो फोर्स का मूल कार्य है गौ माता के प्रति लोगों को जागृत करना। साथ ही सागर के रतौना ग्राम में स्थित गौशाला में भी गौवंश का पालन-पोषण किया जाता है।
अतः वर्तमान समय में आवश्यकता है इन कतिपय समाजसेवियों की तरह जन-जन को गौवंश की रक्षा हेतु जागरूक होने की।
और अंत में प्रस्तुत हैं यहां मेरे कुछ दोहे -
मातृतुल्य गौ की करे, रक्षा सकल समाज।
धवल क्रांति होगी तभी, सुधरेंगे हर काज।।
सड़कों पर मत छोड़िए, गौ हैं मातु समान।
गौ सेवा से ही बढ़े, आन, बान औ शान।।
'वर्षा' गौ सेवक बने, युवा जगत जो आज।
गौ सेवा होती रहे, चलता रहे रिवाज।।
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सारगर्भित और उपयोगी बुधवासरीय अंक।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आदरणीय 🙏
Deleteबहुत अच्छा लेख - ज्ञान की दृष्टि से भी तथा व्यावहारिक दृष्टि से भी । राजा दिलीप को कामधेनु की सेवा के फलस्वरूप ही रघु नामक पुत्र की प्राप्ति हुई थी जिनके नाम पर रघुवंश चला । मेरा मत यही है कि मात्र गौ ही नहीं वरन सभी निर्दोष प्राणियों की रक्षा होनी चाहिए । मनुष्यों द्वारा अपने स्वाद अथवा भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अन्य प्राणियों का वध महापाप है । इतने ज्ञानदायी तथा प्रेरक आलेख के लिए आपका आभार एवं अभिनन्दन वर्षा जी ।
ReplyDeleteआदरणीय माथुर जी,
Deleteहार्दिक धन्यवाद मेरे लेख को अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी से नवाज़ने के लिए 🙏
सही कहा आपने...मूकपशुओं का वध महापाप है। हमारे सभ्य कहे जाने वाले समाज में यह कतई बरदाश्त नहीं किया जाना चाहिए।
हार्दिक शुभकामनाओं सहित,
सादर
डॉ.वर्षा सिंह