बुधवारीय स्तम्भ : विचार वर्षा
या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता : नवरात्रि में मां का महत्व
- डॉ. वर्षा सिंह
चैत्र नवरात्रि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ हो चुकी है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 13 अप्रैल से शुरू हो कर समापन 21 अप्रैल को शक्ति की उपासना के पर्व नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी भगवती की पूजा आराधना की जाएगी। नवरात्रि के अंतिम दिन को रामनवमी अर्थात् राम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाएगा ।
मैं प्रत्येक शारदीय नवरात्रि एवं चैत्र नवरात्रि में माता दुर्गा की उपासना, उपवास, व्रत, पूजन आदि के माध्यम से करती रही हूं किंतु इस चैत्र नवरात्रि के आरम्भ होने के पांच दिन पूर्व ही मेरी माता जी डॉ. विद्यावती "मालविका" को आए हृदयाघात के कारण उन्हें स्थानीय अस्पताल आईसीयू वार्ड में भर्ती कराया गया है। उनकी देखभाल और सेवा सुश्रुषा में संलग्न रहने के कारण मैं इस वर्ष चैत्र नवरात्रि का व्रत -उपवास नहीं रख पा रही हूं। इत्तेफ़ाक़ देखें कि नवरात्रि में मैं अपनी जननी की सेवा में व्यस्त हूं।
एक दिलचस्प वाकया मैं आप लोगों से साझा करना चाहती हूं। यहां बुंदेलखंड में नवरात्रि पर्व का बड़ा महत्व है। हुआ यह कि मैं यहां चिकित्सालय में माता जी की सेवा में थी, उस समय साफ- सफाई करने के लिए आई हुई महिला सफाईकर्मी ने मुझसे बुंदेली बोली में कहा -"काय, जे तुमाई मताई हैं का ?
मैंने भी उसे बुंदेली में उत्तर दिया और कहा -"हओ"
तब वह महिला बोली - "बड़ी सेवा कर रही हो आप अपनी अम्मा के लाने"
मैंने कहा -"हमाई अम्मा हैं तो हमें उनकी सेवा तो करनी ही है। जे तो हमाओ फर्ज है।"
तब वह महिला बोली- " नौरातें सुरू हो गई हैं। काय, तुम उपास रैहो के ने रैहो ?
मेरे मुंह से नकल - "अब उपवास कैसा, वैसे देखा जाए तो मैं उपवास तो कर ही रही हूं, लेकिन जिस प्रकार विधि-विधान से उपवास पूजन व्रत इत्यादि करना होता है, उस तरह नहीं कर पा रही हूं।"
तब वह महिला मुझसे बोली- "सो का भओ ! अम्मा की सेवा तो कर रही हो, अम्मा से बढ़ के जे दुनिया में को आय! तुम तो जा समझो के तुमने देवी मां की सेवा कर लई है।"
मैं उस महिला की यह बात सुनकर सोच में पड़ गई। यह सत्य है कि मां से बढ़कर इस दुनिया में भला कौन है ! हम जिस देवी की उपासना करते हैं आदि शक्ति के रूप में और उनके नौ रूपों के साथ साथ उनके अन्य विभिन्न रूपों की उपासना करते हैं तो हमारी वह उपासना जगत जननी देवी मां को ही समर्पित रहती है। माता अपनी हो, पराए की हो या जगत की हो , सभी पूज्य हैं। फिर आदि शक्ति देवी दुर्गा तो जगत जननी हैं। माता का स्वरूप…. और मां के चरणों में यह सम्पूर्ण जगत है।
दुर्गा सप्तशती में देवी की आराधना की गई है -
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थात् जो देवी सभी प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थात् जो देवी सभी प्राणियों में माता के रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है।
आदिशक्ति देवी दुर्गा के जिन नौ रूपों की आराधना की जाती है, वे ये है -
शैलपुत्री - अर्थात् पहाड़ों की पुत्री ।
ब्रह्मचारिणी - अर्थात् ब्रह्मचारीणी।
चंद्रघंटा - अर्थात् चंद्रमा की तरह चमकने वाली।
कूष्माण्डा - अर्थात् पूरा जगत उनके पैर में है।
स्कंदमाता - अर्थात् कार्तिकेय की माता।
कात्यायनी - कात्यायन आश्रम में जन्म लेने वाली।
कालरात्रि - अर्थात् काल का नाश करने वाली।
महागौरी - अर्थात् गौरवर्ण वाली।
सिद्धिदात्री - सर्व सिद्धि देने वाली।
नवरात्रि में देवी माता से मनोकामनायें पूर्ण करने की आशा लिए उपवास रखते हैं। रात भर माता का जागरण करते हैं। इसी दिन से हिंदू नव वर्ष यानी नव सम्वत्सर की भी शुरुआत होती है। देवी मंदिरों में नवरात्र की अष्टमी पर कुलदेवीमां महागौरी की पूजा और कई धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। श्रद्धालुओं ने मां जगदंबा को प्रसाद व पोशाक चढ़ाकर भजन-कीर्तन किए जाते हैं। जगह-जगह प्रसाद वितरण तथा कन्याओं का पूजन कर उन्हें भोजन कराया जाता हैौ
कोरोना आपदा के कारण इस वर्ष सभी को घर पर ही पूजन, अर्चन, आरती करनी होगी। देवी की आरती का आनंद ही कुछ और होता है।
बुंदेलखंड में गाया जाने वाले एक देवी गीत की छटा और उसका माधुर्य देखिए -
आरती की बिरियां...मैया रानी।
आरती की बिरियां...
मैया शंख बजत मिरदंग
आरती की बिरियां।
ढोल नगाड़े तुरही बाजे,
बाजत ढप उर चंग
आरती की बिरियां।
झांझ खंजरी झूला तारे,
झालर ढोलक संग
आरती की बिरियां।
डमरू श्रंगी उर रमतूला
धुन गूंजत तिरभंग
आरती की बिरियां।
शिव, सनकादिक, नारद, विष्णु
रह गये ब्रह्मा संग
आरती की बिरियां।
सेर बिराजी मैया आई
जी में उठत तरंग
आरती की बिरियां।
सुर -किन्नर, गंधर्व -अप्सरा
सबई एकई रंग
आरती की बिरियां।
इस वर्ष कोरोना महामारी की आपदा के कारण मंदिरों के गर्भगृह बंद हैं। प्रशासन द्वारा मंदिरों और धार्मिक स्थलों के दर्शन के लिए नई गाइडलाइन जारी की गई हैं ताकि भीड़ एकत्रित न हो। इस बार श्रद्धालुओं को कोविड-19 के नियमों के दायरे में रहते हुए ही दर्शन करने होंगे। जो मंदिर बंद नहीं हैं वहां मंदिरों को सैनिटाइज किया जा रहा है और मास्क में ही लोगों को एंट्री दी जा रही है। पिछले वर्ष भी यही हुआ था। लगातार दो बार से कोरोना वायरस के कारण चैत्र मास की नवरात्रि में मंदिरों में पूजा-पाठ बंद है।
इस नवरात्रि आदि शक्ति की उपासना घर में रह कर भी की जा सकती है। वैसे भी अपनी जननी को भूल कर मंदिरों में देवी को पूजने का कर्मकांड उचित नहीं।
पवित्र मन से देवी के स्वरूप का ध्यान करने से भी देवी की आराधना का फल प्राप्त होता है। मैं यह भी निवेदन करना चाहूंगी कि हर किसी को कोरोना संकट को समझकर गाइडलाइंस का पालन करना चाहिए।
और अंत में प्रस्तुत हैं मेरे ये दोहे -
आदि शक्ति की अर्चना, नौ रूपों का गान।
मां के चरणों जाइए, तज कर सारा मान।।
मां अपनी या ग़ैर की, मां से बढ़ कर कौन।
मां की छवि धर ध्यान में, करें प्रार्थना मौन।।
कोरोना की आपदा, घर पर पूजन पाठ।
मास्क पहन, दूरी रखें, रखें न मन में गांठ।।
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteमाता जी की जय हो।
चैत्र नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आदरणीय शास्त्री जी,
Deleteआपके द्वारा मिली सराहना ने मेरी पोस्ट को सार्थक बना दिया है।
हार्दिक धन्यवाद 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
आपका लेख, आपका अनुभव, आपके दोहे; सभी कुछ सराहनीय है वर्षा जी। आपके निमित्त शीघ्र ही सब कुशल-मंगल हो, नवरात्रि में आपको यही शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर पधारने और अपनी विस्तृत टिप्पणी देने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏
Deleteआपकी सराहना पाकर मेरा लेखन सार्थक एवं सफल महसूस हो रहा है मुझे...
सादर,
डॉ वर्षा सिंह
इस श्रम साध्य लेख के लिए सराहना का कोई भी शब्द कम होगा वर्षा जी! 🙏🙏❤❤🌹🌹
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