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Wednesday, November 4, 2020

बुधवारीय स्तम्भ | विचार वर्षा 23 | लाईक, कमेंट्स, हैशटैग और जटायु | डॉ. वर्षा सिंह

प्रिय ब्लॉग पाठकों, "विचार वर्षा"...   मेरे इस कॉलम में आज पढ़िए "लाईक, कमेंट्स, हैशटैग और जटायु" और अपने विचारों से अवगत कराएं ...और शेयर करें 🙏
हार्दिक धन्यवाद युवा प्रवर्तक 🙏🌹🙏
दिनांक 04.11.2020

मित्रों, आप मेरे इस कॉलम को इस लिंक पर भी जाकर पढ़ सकते हैं-

 बुधवारीय स्तम्भ : विचारवर्षा

    लाईक, कमेंट्स, हैशटैग और जटायु

          -डॉ. वर्षा सिंह

     पिछले दिनों किसी टीवी चैनल पर एक घटना की कुछ क्लिप्स बार-बार दोहराई जाती रही है। वह घटना किसी लड़की से दिनदहाड़े सरेआम मेनरोड पर की जा रही बदसलूकी की थी। एक लड़का किसी लड़की का हाथ पकड़ कर उसे घसीटते हुए अपने साथ ले जाने का प्रयास कर रहा था। लड़की का रो-रो कर बुरा हाल था। वह लड़के के चंगुल से निकलने को छटपटाते हुए "हेल्प मी", "प्लीज़ हेल्प मी" की आवाज़ें लगा रही थी। आसपास तमाशबीनों की भीड़ लगी थी। भीड़ में कुछ लोग घटना की वीडियोग्राफी करने में मशगूल थे। टीवी चैनल की महिला एंकर स्क्रीन पर टेलीकास्ट हो रहे इन सब दृश्यों की क्लिपस् रिपीट करके घटना की तहें टटोलने की जद्दोज़हद में जुटी लगभग चींख-चींख कर एंकरिंग कर रही थी। यथा - "कौन है यह लड़की ? क्या कुसूर है इसका ? कौन है यह लड़का? आप देख रहे हैं कि वह किस तरह लड़की का हाथ पकड़ कर घसीट रहा है… लड़की चींख-पुकार कर रही है। क्या वज़ह हो सकती है ? कहीं ये लवज़ेहाद का मामला तो नहीं ? ऑनर किलिंग का मामला भी हो सकता है। आप देख रहे हैं कि लड़की के टॉप की स्लीव फट गई है, बाल बिखर गए हैं, उसकी सेंडिल टूट गई है। आप देख रहे हैं कि लड़का लड़की से किस क़दर बदसलूकी पर उतारू है। आप हमारा चैनल देख रहे हैं तो अभी इसी वक़्त टीवी स्क्रीन की दायीं ओर आ रहे हैशटैग पर अपने कमेंट भेजिए। लाईक कीजिए अगर आपको इस तरह की रिपोर्ट्स और देखनी हैं तो प्लीज़ लाईक अस...हम यहां रुकते हैं एक छोटे से कॉमर्शियल ब्रेक के लिए, ज़ल्द ही लौटेंगे तब तक आप देखते रहिए….आपका अपना चैनल" आदि, आदि… ।
          टीवी पर उस घटना की वीडियोग्राफी और चैनल की महिला एंकर द्वारा उसकी सनसनीखेज प्रस्तुति देख कर मन विचलित हो उठा।
          टीवी पर दिखाया गया वीडियो ही नहीं बल्कि इस तरह के और भी वीडियो आए दिन सोशलमीडिया पर वायरल होते रहते हैं, जिसमें घटनाएं घटती रहती हैं, पीड़ित मदद के लिए आवाज़ लगाते रहते हैं और भावशून्य तमाशबीन भीड़ खड़ी देखती रहती है। भीड़ में से कुछ लोग अपने मोबाईल का कैमरा ऑन कर घटना की वीडियो बनाने में मशगूल रहते हैं। सोशलमीडिया पर इन वीडियो को अपलोड करने के बाद वे लाईक, कमेंट्स और हैशटैग के ज़रिए वायरल किए गए वीडियो की लोकप्रियता का आकलन कर उत्साहित हो कर किसी नई घटना के घटित होने का इंतज़ार करने लगते हैं। वस्तुतः यह बहुत खेदजनक है कि यह सच है हमारे समय का ।
        याद कीजिए त्रेतायुग में जब साधु का वेश धर कर रावण ने छलपूर्वक सीता का अपहरण किया था तो जटायु जैसे पक्षी ने भी मदद के लिए पुकारती सीता को रावण के हाथों से छुड़ाने का प्रयास किया था। भले ही उसे अपने इस प्रयास में घायल हो कर अपनी जान गंवानी पड़ी।
        पौराणिक ग्रंथों के अनुसार प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के दो पुत्र हुए थे- 'गरुड़' और 'अरुण'। अरुण सूर्य के सारथी बने। अरुण के पुत्र थे सम्पाती और जटायु।
       गिद्धराज जटायु वन में तपस्वी सा जीवन व्यतीत करते हुए पर्णकुटी बना कर रहते थे। उधर पिता अयोध्यानरेश दशरथ की आज्ञा का पालन करने हेतु राम भी पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण सहित दण्डकारण्य में पंचवटी नामक पर्णकुटी में निवास कर 14 वर्ष की अवधि व्यतीत कर रहे थे। एक दिन उस वन में लंकापति रावण की बहन शूर्पणखा आई। राम के आकर्षक स्वरूप पर मोहित हो कर उसने राम के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रख दिया। राम के द्वारा इंकार करने पर वह लक्ष्मण से विवाह हेतु अनुरोध करने लगी, लक्ष्मण के इंकार करने पर सीता को मार डालने की धमकी देने लगी। जिससे क्रोधित होकर राम की आज्ञा से लक्ष्मण ने सूर्पनखा के प्रणय निवेदन को ठुकराते हुए उसकी नाक और कान काट दिए थे। रावण ने राम द्वारा से अपनी बहन सूर्पनखा के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए मारीचि नामक एक राक्षस को भेजा। मारीचि स्वर्ण मृग का वेश धर कर सीता के समक्ष इस प्रकार प्रस्तुत हुआ कि सीता उसके माया जाल को समझ नहीं पाने के कारण राम से स्वर्ण मृग को पकड़ने का अनुरोध करने लगीं। राम का अनुरोध टाल नहीं पाए और सीता के कहने पर कपट-मृग मारीच को पकड़ने के लिये सघन वन में प्रविष्ट हो गये। मारीचि के मायाजाल के वशीभूत सीता ने मारीचि को पकड़ने गए राम को लौटता नहीं देख और मारीचि द्वारा "लक्ष्मण, लक्ष्मण" की पुकार को राम द्वारा लगाई गई पुकार समझ कर व्याकुलावश लक्ष्मण को राम को खोजने की आज्ञा दे दी। लक्ष्मण अपने बाण से पंचवटी के द्वार पर एक सुरक्षा रेखा खींच कर राम को खोजने के लिये निकल पड़े। पूर्वषडयंत्रकारी योजनानुसार दोनों भाइयों के चले जाने के बाद आश्रम को सूना देखकर लंकाधिपति रावण ने सीता का हरण कर लिया और बलपूर्वक उन्हें रथ में बैठाकर आकाश मार्ग से लंका की ओर चल दिया। सीता ने रावण की पकड़ से छूटने का पूरा प्रयत्न किया, किंतु असफल रहने पर करुण विलाप करने लगीं। उनके विलाप को सुनकर वनवासी गिद्धराज जटायु ने रावण को ललकारा। रावण द्वारा जटायु की ललकार को अनसुना करने पर जटायु ने रावण पर प्रहार कर सीता को उसे चंगुल से छुड़ाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन अन्त में रावण ने तलवार से जटायु के पंख काट डाले। जटायु मरणासन्न होकर भूमि पर गिर पड़ा और रावण सीता को अपहृत कर लंका की ओर चला गया।
       जब राम लक्ष्मण के साथ सीता की खोज करने के लिये निकले तो घायल जटायु ने उन्हें बताया कि सीता को लंका का राजा रावण अपहृत कर दक्षिण दिशा की ओर ले गया है और उसी ने मेरे पंखों को काट कर मुझे बुरी तरह से घायल कर दिया है। सीता की पुकार सुन कर मैंने उनकी सहायता के लिये रावण से युद्ध भी किया। ये मेरे द्वारा तोड़े हुए रावण के धनुष उसके बाण हैं। इधर उसके विमान का टूटा हुआ भाग भी पड़ा है। रावण ऋषि विश्वश्रवा एवं कैकसी का पुत्र और कुबेर का भाई है। 
         तत्पश्चात् जटायु की मृत्यु हो गई। दुखी राम ने गोदावरी तट पर जटायु का अंतिम संस्कार कर उसे मोक्षगति प्रदान की।

रामचरित मानस में तुलसीदास ने उक्त घटना को कुछ इस तरह वर्णित किया है। चौपाई देखें - 

गीधराज सुनि आरत बानी। रघुकुलतिलक नारि पहिचानी॥
अधम निसाचर लीन्हें जाई। जिमि मलेछ बस कपिला गाई॥
अर्थात् गिद्वराज जटायु ने सीताजी की दुःखभरी वाणी सुनकर पहचान लिया कि ये रघुकुल तिलक श्री रामचन्द्रजी की पत्नी हैं और नीच राक्षस उन्हें लिए जा रहा है, जैसे कपिला गाय म्लेच्छ के पाले पड़ गई हो।

 सीते पुत्रि करसि जनि त्रासा। करिहउँ जातुधान कर नासा॥
धावा क्रोधवंत खग कैसें। छूटइ पबि परबत कहुँ जैसें॥
अर्थात् जटायु ने कहा कि हे सीते पुत्री! भय मत कर। मैं इस राक्षस का नाश करूँगा। यह कहकर वह पक्षी क्रोध में भरकर ऐसे दौड़ा, जैसे पर्वत की ओर वज्र छूटता हो॥

रे रे दुष्ट ठाढ़ किन हो ही। निर्भय चलेसि न जानेहि मोही॥
आवत देखि कृतांत समाना। फिरि दसकंधर कर अनुमाना॥
अर्थात्  जटायु ने ललकारकर कहा कि रे रे दुष्ट! खड़ा क्यों नहीं होता? निडर होकर चल दिया! मुझे तूने नहीं जाना? उसको यमराज के समान आता हुआ देखकर रावण घूमकर मन में अनुमान करने लगा-

की मैनाक कि खगपति होई। मम बल जान सहित पति सोई॥
जाना जरठ जटायू एहा। मम कर तीरथ छाँड़िहि देहा॥
अर्थात् यह या तो मैनाक पर्वत है या पक्षियों का स्वामी गरुड़। पर वह गरुड़ तो अपने स्वामी विष्णु सहित मेरे बल को जानता है! कुछ पास आने पर रावण ने उसे पहचान लिया और बोला- यह तो बूढ़ा जटायु है। यह मेरे हाथ रूपी तीर्थ में शरीर छोड़ेगा।

सुनत गीध क्रोधातुर धावा। कह सुनु रावन मोर सिखावा॥
तजि जानकिहि कुसल गृह जाहू। नाहिं त अस होइहि बहुबाहू॥
अर्थात् यह सुनते ही गीध क्रोध में भरकर बड़े वेग से दौड़ा और बोला- रावण! मेरी सिखावन सुन। जानकी को छोड़कर कुशलपूर्वक अपने घर चला जा। नहीं तो हे बहुत भुजाओं वाले! ऐसा होगा कि-

राम रोष पावक अति घोरा। होइहि सकल सलभ कुल तोरा॥
उतरु न देत दसानन जोधा। तबहिं गीध धावा करि क्रोधा॥
अर्थात् राम के क्रोध रूपी अत्यन्त भयानक अग्नि में तेरा सारा वंश पतिंगे की तरह भस्म हो जाएगा। योद्धा रावण कुछ उत्तर नहीं देता। तब गीध क्रोध करके दौड़ा।

धरि कच बिरथ कीन्ह महि गिरा। सीतहि राखि गीध पुनि फिरा॥
चोचन्ह मारि बिदारेसि देही। दंड एक भइ मुरुछा तेही॥
अर्थात् जटायु ने रावण के बाल पकड़कर उसे रथ के नीचे उतार लिया, रावण पृथ्वी पर गिर पड़ा। गीध सीता को एक ओर बैठाकर फिर लौटा और चोंचों से मार-मारकर रावण के शरीर को विदीर्ण कर डाला। इससे उसे एक घड़ी के लिए मूर्च्छा आ गई।

तब सक्रोध निसिचर खिसिआना। काढ़ेसि परम कराल कृपाना॥
काटेसि पंख परा खग धरनी। सुमिरि राम करि अदभुत करनी॥
अर्थात् तब खिसियाए हुए रावण ने क्रोधयुक्त होकर अत्यन्त भयानक कटार निकाली और उससे जटायु के पंख काट डाले। पक्षीराज जटायु राम की अद्भुत लीला का स्मरण करके पृथ्वी पर गिर पड़ा।

        रामकथा का यह जटायु- रावण प्रसंग रामलीलाओं में अनेक बार देखा जाता है, प्रवचनों में अनेक बार सुना जाता है, किन्तु असंवेदनशीलता सोशल मीडिया भक्तों पर इस क़दर हावी हो गई है कि वे लोग उस दृश्य से कोई सीख लिए बिना तटस्थभाव से किसी महिला पर सरेआम अत्याचार होते देख कर सोशलमीडिया पर लाईक, कमेंट और हैशटैग के आभासी मोहजाल में उलझ कर महिला की सहायता करने का प्रयास करने के बजाए घटना का वीडियो बनाने में लगे रहते हैं। बात- बात में भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाले लोग भी उस समय नारी अपमान की घटनाओं को इस तरह अनदेखा कर देते हैं मानों उनके परिवार की महिलाओं के साथ तो कभी कोई ऊंचनीच हो ही नहीं सकती है। ऐसे समय पर "वसुधैव कुटम्बकम्" को भूल कर "मैं और मेरा परिवार" का हितरक्षण ही उनका मूलमंत्र बन जाता है।
     वस्तुतः आवश्यकता है समाज में व्याप्त नैतिक पतन के ऐसे कारकों को मिटा कर एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण करने में सभी के योगदान की, जिसमें नारी का सम्मान क़ायम रहे… और यदि किन्हीं आसुरी शक्तियों के कारण नारी के सम्मान को कोई ठेस पहुंचे तो सभी एकजुट हो कर उसका प्रतिकार करें, विरोध करें, उन आसुरी शक्तियों का मुक़ाबला करें।
        
और अंत में प्रस्तुत है मेरी काव्यपंक्ति -

हो रही आहत मनुजता, और तुम खामोश हो।
बढ़ रही है स्वार्थपरता, और तुम खामोश हो।
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2 comments:

  1. वर्षा दी, आज की स्थिति यही है कि लोग मदद करने किबजाय वीडियो बनाना ज्यादा पसंद करने लगे है जो कि सर्वथा गलत है। विचारणीय आलेख दी।

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    1. प्रिय ज्योति जी,
      बहुत शुक्रिया कि आपने मेरा लेख पढ़ा और स पर चिंतन कर अपनी प्रतिक्रिया दी।
      मेरे ब्लॉग पर सदैव आपका स्वागत है।
      🙏🌹🙏

      सस्नेह,
      डॉ. वर्षा सिंह

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